दुःख अनिवार्य है लेकिन पीड़ा वैकल्पिक। बनारस के दिनों में इस पंक्ति को पहली बार पढ़ा था। उन दिनों को याद करना ही कितना सुखद और दुखद दोनो एक ही वक्त लगता है। मैरी ओलिवर की एक कविता को सदानीरा पर पढ़ा था,
जिसे कभी प्रेम करती थी
उसने मुझे दिया
अंधकार से भरा एक बक्सा।
वर्षों लग गए
मुझे यह समझ पाने में
कि यह भी एक उपहार था।
प्रेम में शायद ही कोई खाली रहता है। या यूं कहूं तो जो कोई भी किसी से प्रेम कर पाता है, उस प्रेम कर पाने में ही एक व्यक्ति की सफलता है। कितने ही धर्म, जाति, रंग, विचार से हम बंटे होते हैं, और उसके बावजूद किसी को अपने दिल में जगह दे देना, कितना मुश्किल होता है? लेकिन कितने लोग हैं जो इन सबको तोड़ के किसी से प्रेम कर पाता है? और वो प्रेम ही क्या जो धर्म, जाति, रंग के बायसनेस को तोड़ नहीं पाए? एक समाज जहां जाति और धर्म इतनी बड़ी समस्या है वहां प्रेम केवल व्यतिगत सुख की प्राप्ति का केवल जरिया मात्र तो नहीं ही हो सकता है। इसे और भी बहुत कुछ होना पड़ेगा। प्रेम को प्रेम के अलावे बहुत कुछ होना पड़ेगा। बहुत ही ज्यादा कुछ।
मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा हूं। तकिए से अपनी ठुड्डी टीका दिया हूं। धीमी सी रोशनी जल रही है। जी कर रहा है कि बालकनी में बैठ जाऊं। रात के करीब बारह बजने वाले हैं। मैं बालकनी में आ गया। इसी बीच गुड्डू का फोन आ गया। गुड्डू सिविल्स की तैयारी करता है। उसके बारे में लिखना मुश्किल है। वो हम सबसे बेहद अलग है। मतलब बेहद अलग। उसने क्या कहा ? प्रेम चाटुकारिता है। यहां थोड़ा बहुत भी एक्टिविजम नहीं चलता है। यदि करोगे तो बाहर फेंक दिए जाओगे। ये सब उसका अनुभव था।
नीचे गली से बहुत लोगों की आवाज आ रही है। बहुत सारे लोग अब भी जगे हैं। मैं अपने इस फोन से परेशान हो गया हूं। इसकी बैटरी डेड होने वाली है। मुझे अचानक से उस व्यक्ति की याद आ गई जिससे पटना में मिला था। मैं, मेरा दोस्त और वो पटना साहिब के गुरु द्वारे में बैठे थे। बातों बातों में हम राजनीति पर बात करने लगे। उसने यह कहा था कि हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए एक ही समाधान है। सारे मुसलमानो का नरसंहार कर देना। उसने कहा कि तलवार से काट दो। यह सब कितना शॉकिंग था। वो अपने हर एक्ट को जस्टिफाई करने के लिए व्हाट्सएप और यूट्यूब विडियोज, न्यूज चैनल्स का सबूत दे रहा था। वो दलित था – पासी समाज से। जब हमने जाति के सवाल पर बात करनी शुरू की तो बोला कि गरीबी तो है भैया, लेकिन बर्दाश्त कर लेंगे। कितना नफरती बना दिया गया है हमारे समझ को। हम तीनों लोग परेशान थे। लेकिन हम में सबसे ज्यादा जो परेशान था उसे पता ही नहीं था कि वो परेशान है। एक्सट्रीम exclusionary मस्कुलर सवर्ण राष्ट्रवाद की सफलता इसी में छुपी है। वो लोगों की परेशानियों को मुसलमानों की तरफ मोड़ देता है।
लेकिन यह सब कुछ ज्यादा दिन नहीं चलेगा। सब कुछ बदल जाएगा। कहीं दूर से फरीदा खन्नूम जोर से अलाप ले रही है। यदि भाई कमरे में नहीं होता तो मैं भी बजने को लगा देता। सुबह धूप सीधे आंख पर ही आती है।
आज लिखते वक्त बिलकुल भी दुखी नहीं था। शायद अब वो पुराने दिन नहीं रहे जहां लिखावट का संबद्ध एंक्साइटी से था। आज पूरे दिन कुछ नहीं पढ़ा। कितना अजीब लगता है जिस दिन कुछ भी नहीं पढ़ पाता हूं। कभी कभी सोचता हूं कि यह बर्डन कहां से आया है?
दिल्ली
29/08 - 30/08/2023
पैरों से महसूस करता हूँ धरती का फैलाव,
ReplyDeleteहाथों से महसूस करता हूँ दुनिया,
मस्तक अनुभव करता है, आकाश,
दिल में तड़पता है अँधेरे का अंदाज़
One of the best post
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