ये कांग्रेसी है??

2001 का साल था..14 मार्च का दिन..देश के न्यूज़ चैनलों पर कुछ वीडियो चलने लगे..कुछ ही समय में देश के राजनीतिक गलियारों में तहलका मच गया..जी हाँ..यही नाम था उस मीडिया हाउस का जिसने भारतीय लोकतंत्र को अपने खोजी पत्रकारिता से सलामी दी।
Good Journalism is about great stories founded on facts,backed by sound research and great writing....Surya Gangadharan
TEHELKA:THE SENSATION
2000 में इसकी शुरुआत एक वेबसाइट के तौर पर हुई थी। शुरुआत करने वाले थे तरुण तेजपाल,अनिरुद्ध बहल और सैंकड़ों जांबाज़ युवा।इन्होंने अपनी स्टिंग आपरेशन की शुरुवात की 'आपरेशन वेस्ट एन्ड' से। उस समय में देश में ये बहुत सुना जा रहा था कि रक्षा सौदों में 'मिडिल मैन' याने दलालों को बहुत फायदा हो रहा है।
                                          तहलका के दो जांबाज़ पत्रकार अनिरुद्ध बहल और मैथ्यूय सैम्युअल ने मिलकर एक फ़र्ज़ी कंपनी बनाई और उस कंपनी के नाम का प्रयोग कर रक्षा मंत्रालय के निचले अफसर से लेकर बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण,समता पार्टी की अध्यक्षा जया जेटली तक को रिश्वत लेते दिखाया गया। तहलका  के चीफ एडिटर के मुताबिक उन्होंने बांगरू लक्ष्मण को ₹1,50,000 और जया जेटली को ₹3,00,000 रुपये के साथ साथ कुल मिलाकर 15 लाख रुपये बांटे थे जिसमे उन्हें बंगारू लक्ष्मण ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र से बात करने की बात कही थी और जया जेटली ने उस समय के रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नान्डिस से बात आगे बढ़वाने की वादा की थी।जिन्होंने भी रिश्वत ली उस सबने रक्षा सौदा इन्हें ही दिलवाने की बात कही। दोनों जांबाज़ों ने कई महीनों के मेहनत के बाद करीब 200 वीडियो बनाए और जब इनका पैसा खत्म हो गया तो इन्होंने वीडियो को रिलीज कर दिया।
                                          वीडियो के रिलीज़ के बाद बंगारू लक्ष्मण,जया जेटली, जॉर्ज फ़र्नान्डिस तीनों ने अपने  पद से इस्तीफा दिया था।हालांकि जॉर्ज को फिर से रक्षा मंत्रालय दे दिया गया।
                                         
  "तिरा निज़ाम है सील दे ज़बान-ए-शायर का
  ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए"
दुष्यंत की ये पंक्ति शायद तरुण और उसके दोस्तों ने नही पढ़ी थी।सरकार और सत्ता के खिलाफ आवाज उठाना कभी भी आसान नहीं रहा है।तहलका के ऑफिस पर इनकम टैक्स के छापे पड़े,प्रोस्टिट्यूट्स का प्रयोग करने के लिए 'इममोरल ट्रैफिक एक्ट' का प्रयोग किया गया,इन्वेस्टर्स ने पैसा देने से मना कर दिया और 2003 तक तहलका की 124 लोगों की टीम घटकर 3 हो गयी।
जिन जाबांजो ने मिलकर देश के नागरिकों को इतना बड़ा सच दिखाया ,उनके इस कार्यों को कई मेनस्ट्रीम मीडिया ने आलोचना की। तरुण और उसकी टीम को कांग्रेसी कहा गया और भी कई आरोप जैसे उन्हें पाकिस्तान समर्थित एजेंसी बताया गया जो भारत के दामन पर कीचड़ उछाल रही है।
रुकेंगे नहीं झुकेंगे नहीं....
2004 तक वेबसाइट बंद हो जाने के कारण तहलका के शेयर को बेचकर पैसा जुटाया गया और इसी वर्ष तहलका को 'टेबलायड' फॉर्म में निकाला गया। VS Naipol ने तहलका पर पड़ते छापो को देखते हुए काफी गंभीर चिंता व्यक्त की थी। 2007 में तहलका ने 2002 के गुजरात दंगों पर अपनी स्टिंग आपरेशन की रिपोर्ट प्रस्तुत की।तहलका अब भी जिंदा है लेकिन उसने भारत में एक खोजी पत्रकारिता की नींव सी डाल दी।अनेक मीडिया हाउसेस ने इसे अपनाया।
                  अनिरुद्ध बहल ने 2003 में तहलका को छोड़ दिया तो उन्होने cobrapost नाम से एक दूसरी खोजी पत्रकारिता करने वाली कंपनी बनाई जिसके 2018 में आये वीडियो Operation 136 ने भारतीय मीडिया हाउसेस की पोल खोल दी लेकिन operation 136 को मेनस्ट्रीम मीडिया ने कोई तवज्जो नहीं दी।
THIS STORY IS NOT THE LAST...
तरुण,अनिरुद्ध कोई आखिरी नाम हैं इस दास्तान के ..इनसे पहले भी थे और भी आगे आएंगे।देश में सत्ता के खिलाफ आवाज उठाना हमेशा से एक मुश्किल काम रहा है।एक रिपोर्ट के अनुसार 2005 में RTI एक्ट के लागू होने से अब तल कुल 65 rti एक्टिविस्टों की मौत हो गयी है। भारत में पत्रकारिता की स्वन्त्रता पिछले कुछ सालों में 2 स्थान गिरकर 136 हो गयी। किसी ने कहा है,"किसी भी काम को करने का सबसे बढ़िया समय वही होता है जो उस काम को करने का सबसे खतरनाक समय होता है।" सच बयान करना उतना ही आवश्यक है जितना झूठ नहीं बोलना।
Note:- Cobrapost के वीडियो आपरेशन 136 के नाम से उनके यूट्यूब चैनल पे मिल जाएंगे।
खोजी पत्रकारिता के संघठित कार्यों को cij.co.in(centre for investigative journalism) पर देख सकते हैं।
                                 

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