दुष्यंत ने बहुत पहले कहा था कि,
"कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए,
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए"
"कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए,
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए"
इस देश की ये बदकिस्मती रही है कि आजादी के इतने वर्षों के बावजूद देश की एक बहुत बड़ी आबादी गरीबी के गरीब सरकारी परिभाषा के अनुसार भी अपना जीवन गुज़र बसर करती है। जब आप रात में अच्छे खाने में भी मसाला-नमक या स्वाद के लिए मीन-मेख निकालते हैं तो आपही के देश में 15 करोड़ से भी अधिक व्यक्ति भूखे पेट सोते हैं। भारत अब भी दुनिया का दूसरा सबसे गरीब आबादी वाला देश है।इन सब आंकड़ों से आपको अपने देश के गरीबों की हालत तो पता चल ही गया होगा।
चलिए अब बात करते हैं ऑक्सफेम इंडिया की एक रिपोर्ट की जो कि पिछले साल प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में 2017 में जितने भी धन का निर्माण हुआ उसका 73% भाग इस देश के 1% सबसे अमीर लोगों के पास पहूंच गया। इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछले 12 महीनों में इस 1% सबसे अमीर लोगों के संपत्ति में 20,913 बिलियन भारतीय रुपया की वृद्धि हुई है जो कि 2017-18 के केंद्रीय सरकार के पूरे बजट के बराबर है।इस काल में देश के सबसे गरीब 67 करोड़ भारतीय के संपत्ति में केवल 1% की वृद्धि हुई है।
एक बात तो साफ है कि 1991 में लागू की गयी उदारीकरण की नीति ने देश में असमानता की खाई को बहुत बढ़ा दिया है। इन 27 वर्षों में सरकार की नीतियों का अधिकांश फायदा उनलोगों ने उठाया जो सक्षम थे,जिनकी शिक्षा उच्च स्तर की थी,जो नई चीजों को समझते व सीखने को तैयार थे।
अब बात करते हैं कि वर्तमान में कांग्रेस के द्वारा चुनाव से पहले किये गया ये वादा कि वो इस देश के सबसे गरीब 20% परिवार को प्रति महीने 6000 रुपया सीधे उसके बैंक खाता में भेजेगी। 20% गरीब परिवार का मतलब लगभग 5 करोड़ परिवार याने 25 करोड़ लोगों को सीधे इस योजना का फायदा पहुंचेगा।
एक बात साफ है कि इस प्रकार की योजनाओं को अब तक इतनी बड़ी आबादी पर लागू नहीं किया गया है। जिन देशों ने लागू भी किया है उनके क्रियान्वयन का क्षेत्र बहुत छोटा रहा है।भारत में पहले भी दिल्ली व मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में एक-दो हज़ार की आबादी पर इसी प्रकार की योजना को लागू किया गया था। दिल्ली व मध्यप्रदेश दोनों में अच्छे आउटकम देखने को मिले थे। जिन्हें सहायता राशि मिल रही थी वो इसे शिक्षा,स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे थे। सिक्किम की एसडीएफ़ सरकार इसे 2020 से अपने राज्य में लागू करने जा रही है।
सबसे पहली बात इस प्रकार की योजना पर अब तक कोई कंक्रीट रिसर्च उपलब्ध नहीं है।हम अक्सर ये कहते हैं कि इससे भारत का राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा व ये बजट का 14% हिस्सा इसी पर खर्च हो जाएगा। समझने वाली बात ये है कि देश का बजट कभी भी स्थिर नहीं रहा है।2018-19 का बजट लगभग 24 लाख करोड़ का था तो वहीं ये इस साल बढ़कर लगभग 27 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। इस पूरे योजना पर कुल व्यय लगभग 3.5 लाख करोड़ तक आएगा।अपेक्षित है कि बजट अगले वर्ष भी बढ़ जाएगा क्योंकि देश का टैक्स कलेक्शन प्रत्येक वर्ष बढ़ता है। अब तक इस देश की सभी योजनाओं में कहीं न कहीं मिडिल मैन का बहुत प्रभाव रहा है जो कि सभी योजनाओं की सब्सिडी के लीकेज का बहुत बड़ा कारण है लेकिन यहाँ पर सीधे गरीब परिवारों के खाते में पैसा भेजा जाएगा। एक भ्रांति और है इस योजना को लेकर कि व्यक्ति पैसे को सही स्थान पर खर्च नहीं करेगा और पुरुष इसे शराब या नशा सेवन पर व्यय कर देंगे लेकिन इस प्रकार की बात कहने वाले अपने तर्क के पीछे अपने पूर्वाग्रह को ज्यादा तरजीह देते हैं बशर्ते कि वो कोई डेटा उपलब्ध कराए।
एक बात जो बहुत ज्यादा चलती है वो ये है कि इतनी बड़ी योजना का क्रियान्वयन कैसे होगा? एक जवाब क्या इस देश की सभी योजना का फायदा उनलोगों तक पहुँच ही गया जिनतक पहुंचाने की बात की गयी थी? दूसरा ये कि इतने बड़े देश में अगर 20% सबसे गरीब लोगों को सरकार इसलिए नहीं फायदा पहुंचा पाती है क्योंकि उसके पास क्रियान्वयन करने का सही ज़रिया उपलब्ध नहीं है तो ये किसी भी सरकार के लिए आत्ममंथन करने का समय है कि क्या वो उस पद पर बैठने का हक़दार है जो समावेशी विकास के लिये बनाया गया है?यदि कोई सरकार ये जानकारी जुटा पाने में असक्षम है कि उनके देश में कितने गरीब हैं तो ये पूरे के पूरे सिस्टम पर सवाल है! सिस्टम में जब लोग होंगे तब भी तो आप किसी योजना के सही क्रियान्वयन की उम्मीद करेंगे क्योंकि अभी राज्य सरकारों में 20 लाख स्वीकृत पद खाली पड़े हैं और केंद्र सरकार के भी महत्वपूर्ण विभागों में लाखों पद खाली पड़े हैं!!
कुछ लोग ये कहते हैं कि अगर व्यक्ति को पैसे बिना कोई काम के दे दिया जाय तो वे आलसी व अकर्मण्यता का शिकार हो जाएंगे और उन्हें बैठे-बैठे खाने की आदत लग जाएगी। बहुत साधारण सा जवाब है कि 'पैसा पैसा को खींचता है' और हम अक्सर अधिक पाने की इच्छा रखते हैं।
बहुत बड़ा सवाल कि पैसा कहाँ से आएगा?? छोटा जवाब; जहाँ से सबके लिये आता है।चलिए बताते हैं...ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर इस 1% प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के धन पर 0.5% कर वृद्धि कर दिया जाय तो भारत व सभी राज्य सरकारें मिलकर जितना खर्च स्वास्थ्य पर करती है उससे 50% प्रतिशत अधिक पैसा खर्च कर पाएगी। वर्तमान में लगभग 2,08,166 करोड़ कुल स्वास्थ्य पर खर्च होता है। अब आप इस 1% सबसे अमीर लोगों के धन पर 1.5% कर वृद्धि करेंगे तो आपके पास प्रत्येक वर्ष 3,24,000 करोड़ पैसा आ जाएगा जो कि इस योजना पर पड़ने वाले कुल व्यय का अधिकांश पैसा है।
यह योजना कहीं न कहीं भारत के संयुक्त राष्ट में स्वीकार किये गए 2030 तक गरीबी को खत्म करने का लक्ष्य को बहुत पहले अचीव कर लेगा। इस योजना को ज्यादे समय तक चलाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
एक बात जो मुझे इस लेख को लिखते वक़्त साफ समझ आ रहा था कि बहुत अरसे बाद गरीबी फिर से चुनाव का एक मुद्दा बना है।सभी गरीब पर चर्चा करने के बदले अर्थव्यवस्था,फिस्कल डेफिसिट के चक्कर में पड़ गए। कहीं न कहीं इस देश ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया है।पीयूष मिश्र ने एक बार कहा था कि,
इस देश ने जिस काम को जिस शख्स के जिम्मे था सौंपा,
हर उस शख्स ने उस काम की माचिस लगा के रख दी।
चलिए अब बात करते हैं ऑक्सफेम इंडिया की एक रिपोर्ट की जो कि पिछले साल प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में 2017 में जितने भी धन का निर्माण हुआ उसका 73% भाग इस देश के 1% सबसे अमीर लोगों के पास पहूंच गया। इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछले 12 महीनों में इस 1% सबसे अमीर लोगों के संपत्ति में 20,913 बिलियन भारतीय रुपया की वृद्धि हुई है जो कि 2017-18 के केंद्रीय सरकार के पूरे बजट के बराबर है।इस काल में देश के सबसे गरीब 67 करोड़ भारतीय के संपत्ति में केवल 1% की वृद्धि हुई है।
एक बात तो साफ है कि 1991 में लागू की गयी उदारीकरण की नीति ने देश में असमानता की खाई को बहुत बढ़ा दिया है। इन 27 वर्षों में सरकार की नीतियों का अधिकांश फायदा उनलोगों ने उठाया जो सक्षम थे,जिनकी शिक्षा उच्च स्तर की थी,जो नई चीजों को समझते व सीखने को तैयार थे।
अब बात करते हैं कि वर्तमान में कांग्रेस के द्वारा चुनाव से पहले किये गया ये वादा कि वो इस देश के सबसे गरीब 20% परिवार को प्रति महीने 6000 रुपया सीधे उसके बैंक खाता में भेजेगी। 20% गरीब परिवार का मतलब लगभग 5 करोड़ परिवार याने 25 करोड़ लोगों को सीधे इस योजना का फायदा पहुंचेगा।
एक बात साफ है कि इस प्रकार की योजनाओं को अब तक इतनी बड़ी आबादी पर लागू नहीं किया गया है। जिन देशों ने लागू भी किया है उनके क्रियान्वयन का क्षेत्र बहुत छोटा रहा है।भारत में पहले भी दिल्ली व मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में एक-दो हज़ार की आबादी पर इसी प्रकार की योजना को लागू किया गया था। दिल्ली व मध्यप्रदेश दोनों में अच्छे आउटकम देखने को मिले थे। जिन्हें सहायता राशि मिल रही थी वो इसे शिक्षा,स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे थे। सिक्किम की एसडीएफ़ सरकार इसे 2020 से अपने राज्य में लागू करने जा रही है।
सबसे पहली बात इस प्रकार की योजना पर अब तक कोई कंक्रीट रिसर्च उपलब्ध नहीं है।हम अक्सर ये कहते हैं कि इससे भारत का राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा व ये बजट का 14% हिस्सा इसी पर खर्च हो जाएगा। समझने वाली बात ये है कि देश का बजट कभी भी स्थिर नहीं रहा है।2018-19 का बजट लगभग 24 लाख करोड़ का था तो वहीं ये इस साल बढ़कर लगभग 27 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। इस पूरे योजना पर कुल व्यय लगभग 3.5 लाख करोड़ तक आएगा।अपेक्षित है कि बजट अगले वर्ष भी बढ़ जाएगा क्योंकि देश का टैक्स कलेक्शन प्रत्येक वर्ष बढ़ता है। अब तक इस देश की सभी योजनाओं में कहीं न कहीं मिडिल मैन का बहुत प्रभाव रहा है जो कि सभी योजनाओं की सब्सिडी के लीकेज का बहुत बड़ा कारण है लेकिन यहाँ पर सीधे गरीब परिवारों के खाते में पैसा भेजा जाएगा। एक भ्रांति और है इस योजना को लेकर कि व्यक्ति पैसे को सही स्थान पर खर्च नहीं करेगा और पुरुष इसे शराब या नशा सेवन पर व्यय कर देंगे लेकिन इस प्रकार की बात कहने वाले अपने तर्क के पीछे अपने पूर्वाग्रह को ज्यादा तरजीह देते हैं बशर्ते कि वो कोई डेटा उपलब्ध कराए।
एक बात जो बहुत ज्यादा चलती है वो ये है कि इतनी बड़ी योजना का क्रियान्वयन कैसे होगा? एक जवाब क्या इस देश की सभी योजना का फायदा उनलोगों तक पहुँच ही गया जिनतक पहुंचाने की बात की गयी थी? दूसरा ये कि इतने बड़े देश में अगर 20% सबसे गरीब लोगों को सरकार इसलिए नहीं फायदा पहुंचा पाती है क्योंकि उसके पास क्रियान्वयन करने का सही ज़रिया उपलब्ध नहीं है तो ये किसी भी सरकार के लिए आत्ममंथन करने का समय है कि क्या वो उस पद पर बैठने का हक़दार है जो समावेशी विकास के लिये बनाया गया है?यदि कोई सरकार ये जानकारी जुटा पाने में असक्षम है कि उनके देश में कितने गरीब हैं तो ये पूरे के पूरे सिस्टम पर सवाल है! सिस्टम में जब लोग होंगे तब भी तो आप किसी योजना के सही क्रियान्वयन की उम्मीद करेंगे क्योंकि अभी राज्य सरकारों में 20 लाख स्वीकृत पद खाली पड़े हैं और केंद्र सरकार के भी महत्वपूर्ण विभागों में लाखों पद खाली पड़े हैं!!
कुछ लोग ये कहते हैं कि अगर व्यक्ति को पैसे बिना कोई काम के दे दिया जाय तो वे आलसी व अकर्मण्यता का शिकार हो जाएंगे और उन्हें बैठे-बैठे खाने की आदत लग जाएगी। बहुत साधारण सा जवाब है कि 'पैसा पैसा को खींचता है' और हम अक्सर अधिक पाने की इच्छा रखते हैं।
बहुत बड़ा सवाल कि पैसा कहाँ से आएगा?? छोटा जवाब; जहाँ से सबके लिये आता है।चलिए बताते हैं...ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर इस 1% प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के धन पर 0.5% कर वृद्धि कर दिया जाय तो भारत व सभी राज्य सरकारें मिलकर जितना खर्च स्वास्थ्य पर करती है उससे 50% प्रतिशत अधिक पैसा खर्च कर पाएगी। वर्तमान में लगभग 2,08,166 करोड़ कुल स्वास्थ्य पर खर्च होता है। अब आप इस 1% सबसे अमीर लोगों के धन पर 1.5% कर वृद्धि करेंगे तो आपके पास प्रत्येक वर्ष 3,24,000 करोड़ पैसा आ जाएगा जो कि इस योजना पर पड़ने वाले कुल व्यय का अधिकांश पैसा है।
यह योजना कहीं न कहीं भारत के संयुक्त राष्ट में स्वीकार किये गए 2030 तक गरीबी को खत्म करने का लक्ष्य को बहुत पहले अचीव कर लेगा। इस योजना को ज्यादे समय तक चलाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
एक बात जो मुझे इस लेख को लिखते वक़्त साफ समझ आ रहा था कि बहुत अरसे बाद गरीबी फिर से चुनाव का एक मुद्दा बना है।सभी गरीब पर चर्चा करने के बदले अर्थव्यवस्था,फिस्कल डेफिसिट के चक्कर में पड़ गए। कहीं न कहीं इस देश ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया है।पीयूष मिश्र ने एक बार कहा था कि,
इस देश ने जिस काम को जिस शख्स के जिम्मे था सौंपा,
हर उस शख्स ने उस काम की माचिस लगा के रख दी।
Good 👌👌
ReplyDeleteBahut sahi netaji
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