दोस्त हम तुम्हारे संग खेले तो नहीं थे.होली या ईद भी तो हमने तुम्हारा देखा नहीं था. पंजाब भी हम जा नहीं सके हैं.लेकिन तुम हमारे आजादी के स्त्रोत हो. इतिहासकार तो तुम्हे ही भारत के अहिंसा आन्दोलन का जनक कहते हैं. भगत तो तुम्हारे हत्यारे को भारतीय इतिहास का सबसे क्रूर इंसान मानता था.100 वर्षों में हमने बहुत तरक्की है। लेखकों ने तुम्हारे लिए कविताएँ लिखी है और किताबों की तो झड़ी है तुमपर. पढ़े हो कि नहीं? सुभद्रा ने लिखा है..
परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है
हा! ये प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खाकर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।।
इन सौ सालों में हमने तुम्हारे हत्या को जायज़ ठहराने वाले देश को कई मायनों में पीछे छोड़ दिया है. हिंसा के प्रति हिंसा तो कभी भी हमारा हथियार नहीं रहा है.
हिंदुस्तानी आज उनके यहाँ जाते हैं,व्यापार करते हैं,पैसा कमाते हैँ, ब्रितानी क्लबों में अंग्रेज़ी बोलकर शेम्पन के बोतल गटकते हैं,उसकी अर्थव्यवस्था बनाते हैं। अफसोस मेरे दोस्त! आज तुम्हारे यही बदतमीज़ दोस्त ब्रिटेन में सबसे बड़ी माइनॉरिटी कम्युनिटी हैं. पंद्रह लाख की संख्या में रहते हैं वहाँ. ब्रिटेन की जी.डी.पी. में 6 फीसदी का योगदान देते हैं. वर्तमान में हाउस ऑफ कॉमन में 12 भारतीय मूल के सांसद हैं.भारत की कंपनियाँ ब्रिटेन में दूसरी सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय जॉब क्रिएटर है। क्या इन्हें तुम्हारा ख्याल नहीं आता है?
मैंने अपने इस आर्टिकल के शुरुआत में लिखा था कि "हम तुम्हारे बदतमीज़ दोस्त हैं।" हाँ,क्या ये पंद्रह लाख लोग ब्रिटेन पर तुमसे माफी माँगने के लिए दबाव नहीं बना सकते हैं? क्या ये पंद्रह लाख लोग एक दिन के लिए भी ब्रिटेन की सड़कों पर नहीं उतर सकते हैं? और क्या नहीं बोल सकते हैं कि जबतक माफी नहीं तबतक काम नहीं? क्या माफी माँगने जैसी बात आधिकारिक तौर पर नहीं की जा सकती है?
दोस्त! हमें अफसोस है कि इस मुल्क ने तुम्हें केवल वार्षिक शोक मनाने के लिये स्थान दिया है. मुझे उम्मीद है उन 15 लाख भारतीयों से व सांसदों से और उन पाकिस्तानियों दोस्तों से भी जिसने आजादी की लड़ाई हमारे साथ लड़ी थी कि वो निकलेंगे एकदिन अपने घरों से,अपने ऑफिसों से, अपने कुनबों से और पूछेंगे अपने ब्रितानी आकाओं से अपने दोस्तों के शहादत पर सवाल. तब तक मेरे साथी..हम तुम्हारे बदतमीज़ दोस्त ही हैं!!!
परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है
हा! ये प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खाकर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।।
इन सौ सालों में हमने तुम्हारे हत्या को जायज़ ठहराने वाले देश को कई मायनों में पीछे छोड़ दिया है. हिंसा के प्रति हिंसा तो कभी भी हमारा हथियार नहीं रहा है.
हिंदुस्तानी आज उनके यहाँ जाते हैं,व्यापार करते हैं,पैसा कमाते हैँ, ब्रितानी क्लबों में अंग्रेज़ी बोलकर शेम्पन के बोतल गटकते हैं,उसकी अर्थव्यवस्था बनाते हैं। अफसोस मेरे दोस्त! आज तुम्हारे यही बदतमीज़ दोस्त ब्रिटेन में सबसे बड़ी माइनॉरिटी कम्युनिटी हैं. पंद्रह लाख की संख्या में रहते हैं वहाँ. ब्रिटेन की जी.डी.पी. में 6 फीसदी का योगदान देते हैं. वर्तमान में हाउस ऑफ कॉमन में 12 भारतीय मूल के सांसद हैं.भारत की कंपनियाँ ब्रिटेन में दूसरी सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय जॉब क्रिएटर है। क्या इन्हें तुम्हारा ख्याल नहीं आता है?
मैंने अपने इस आर्टिकल के शुरुआत में लिखा था कि "हम तुम्हारे बदतमीज़ दोस्त हैं।" हाँ,क्या ये पंद्रह लाख लोग ब्रिटेन पर तुमसे माफी माँगने के लिए दबाव नहीं बना सकते हैं? क्या ये पंद्रह लाख लोग एक दिन के लिए भी ब्रिटेन की सड़कों पर नहीं उतर सकते हैं? और क्या नहीं बोल सकते हैं कि जबतक माफी नहीं तबतक काम नहीं? क्या माफी माँगने जैसी बात आधिकारिक तौर पर नहीं की जा सकती है?
दोस्त! हमें अफसोस है कि इस मुल्क ने तुम्हें केवल वार्षिक शोक मनाने के लिये स्थान दिया है. मुझे उम्मीद है उन 15 लाख भारतीयों से व सांसदों से और उन पाकिस्तानियों दोस्तों से भी जिसने आजादी की लड़ाई हमारे साथ लड़ी थी कि वो निकलेंगे एकदिन अपने घरों से,अपने ऑफिसों से, अपने कुनबों से और पूछेंगे अपने ब्रितानी आकाओं से अपने दोस्तों के शहादत पर सवाल. तब तक मेरे साथी..हम तुम्हारे बदतमीज़ दोस्त ही हैं!!!
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