एक लेखक

एक लेखक जब लिखता है
तो दरअसल वो अपने सपनों को उकेर रहा होता है
कागजों पर
वो कुरेद रहा होता है
मजदूरों के घाव को
जो ज़ुल्म सहते सहते भोथर हो चुका है
वो शब्दों से
भूखे बच्चों की पेट को भरने की कोशिश कर रहा होता है
जिसके उदर कुपोषण के मारे फूल चुका है
वो ज़ज़्बा दे रहा होता है
सबको अपने हक़ के लिए लड़ने का
वो अपने शब्दों से तोड़ देना चाहता है
उन सभी बेड़ियों को
जो औरतों को बांधने की ज़ुर्रत करता है
एक लेखक लिखते वक़्त
ख़ुद से लड़ रहा होता है,
वो सपना भी देख रहा होता है
कि एक दिन सबकुछ
"कविता के शब्द-बा-शब्द जैसी दुनिया के बन जाने का"
वो झूठ भी लिख देता है
इस उम्मीद में कि
एक दिन सब सच हो जाएगा,
वो कल्पना को भी सच मानकर
उसे अलंकारों से सुसज्जित करता है
ताकि नाउम्मीदों से भरी इस दुनिया में एक उम्मीद बना रहे,
एक लेखक अपनी रचनाओं में
उन्हें आवाज देता है
जिसकी ध्वनि की तरंगों की वेग
सरकार के "सब कुछ अच्छा है" के शोर में
गुम होने लगती है,
एक लेखक वही होता है
जिसकी कविताएँ प्रतिरोध की आवाज बनकर
सत्ता से टकराये
सड़कों पर जो जुल्म के विरोध सभा में गायी जाय
जिसकी लिखी पँक्तियाँ तख्तियों में उकेरी जाय
और जो थक चुके अनशनकारियों के पेट में
निवाला का काम करे
एक लेखक वही नहीं होता है
जो केवल अपने सपनों को लिख देता है
बल्कि उस सपने को हकीकत में बदलने के लिए
जो ख़ुद मजदूरों की बस्तियों में जाता है
जो भूखे बच्चों के लिए रोटियां बेलता है
जो अपनी प्रेमिका को भी उतनी आजादी देता है
जितना वो अपनी रचनाओं में
इस समाज से माँग करता है
और सबसे अच्छा लेखक वही होता है
जो अपने लिखे सपने को
नहीं जी पाने पर
एक दिन
किसी शाम
अपनी कविता की
अपने लेखों की
लिखी सभी पंक्तियों को ध्वस्त कर देता है.
©नीतीश

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