मैं ताउम्र करता रहूँगा तुमसे प्यार

मेरी महबूब
मैं ताउम्र करता रहूँगा तुमसे प्यार
तब भी जब तुम बुढ़ापे में
भूल जाओगी मुझे
किसी बेरहम मानवजनित बीमारी के कारण,
मैं उस वक़्त भी तुम्हारे हाथों में हाथ डालकर
ले जाऊँगा तुम्हें वो जगह
जहाँ पे मिला था तुमसे सबसे पहले,
हम अपनी कम होते आंखों की रोशनी में भी
देखने जाएंगे डूबते हुए आफताब को,
मैं तुम्हें पढ़कर सुनाऊँगा घंटों
वो बातें जो
हमने की थी अपनी जवानी में
शहर के नदी किनारे बैठकर,
मैं तुम्हें सुनाऊँगा
तुम्हारी पसंद के गाने
और तुम्हारी पसंद की कविताएँ,
मैं तुम्हें पढ़कर सुनाऊँगा
तुम्हारी पसंदीदा लेखक की नई किताब
शहर के इकलौते किताब की दुकान से लाकर,
मैं तुम्हें खबर दूँगा
उस समय के सबसे फासीवादी कृत्यों को,
मैं तुम्हें ये भी बताऊंगा
कि कितने किसानों ने की है आत्महत्या
जब हम प्रेम के गीत गा रहे थे!
मैं तुम्हे ये भी बताउँगा
कि कितने दलितों की बस्तियाँ में
अब भी होते हैं ज़ुल्म,
मैं तुम्हें उन लडकियों की भी
कहानी सुनाऊँगा जिन्हें बन्द कर दिया गया है
महिला छात्रावासों में सुरक्षा कारणों से,
मैं तुम्हें निहारूँगा अपलक
बिल्कुल वैसे ही जैसे निहारेगी
हमारी पोती-नाती अपने प्रेमियों को,
मैं तुम्हें अपने काँपते हाथों से बनाकर खिलाऊंगा
वो व्यंजन
जो हमने खाई थी साथ में बैठकर
अपने सबसे खुशनुमा पलों में,

मैं वो सब करूँगा
मेरी महबूब
जो हमदोनों को पसंद था,
जो हमने किये थे अपनी जवानी में,
यकीन मानो हमारे बुढ़ापे के प्रेम
से जलेंगे कॉलोनियों के नव युगल,
सरकारें मजबूर हो जाएंगी 'एंटी-रोमियो'
स्क्वाड में 'वृद्ध' नाम का नया विभाग बनाने को,
मैं तुम्हारे गिरते दांतों को सहेज कर रखूँगा
अपने गिरते हुए दांतों के बगल में
ताकि वो चिढ़ा सके एक दूसरे को
कि किसके कितने दाँत पहले गिरे..

मैं ताउम्र करता रहूँगा तुमसे प्यार
मेरी महबूब
जैसे किसान करता है अपने खेत से
फसल कटने के बाद भी,
जैसे मजदूर करता है
अपने काम से
हड़ताल करने के बाद भी,
जैसे एक नर्तकी करती है
अपने नृत्य से
नृत्य छोड़ने के बाद भी,
जैसे एक युवती करती है
अपनी आजादी से
होस्टल में बन्द रहने के बावजूद,
जैसे एक युवक करता है
अपनी प्रेमिका से
प्रेम में बिछुड़ने के बाद भी..

मेरी महबूब
हमारा प्रेम ताउम्र जवान रहेगा
हम उस वक़्त भी प्रेम करेंगे
जब प्रेम करना अपराध मान लिया जाएगा,
हम उस वक़्त भी शहर में घूमेंगे
जब लगा होगा कर्फ्यू,
जब सत्ता की बन्दूकों से
घर में बैठे-बैठे फटेंगे हमारे कान,
जब युद्ध छिड़ा होगा
शहर के दो धर्मों के लोगों के बीच में,
जब पीटा जाएगा दो नव प्रेमी युगल को
समाज की दकियानूसी बंदिशों को तोड़ने के लिए,

मेरी महबूब
हम उस वक़्त भी प्रेम करेंगे
जब प्रेम करना सहज नहीं होगा,
जब आदिवासी करेंगे विरोध सभा
अपने जल-जंगल-ज़मीन के लिए,
जब सैनिक लड़ेंगे युद्ध
अपने ही लोगों के खिलाफ,
जब सरकारें हो जाएंगी बहरी,
जब वो नहीं सुनेंगी आम नागरिकों की समस्या,
जब लोकतंत्र केवल वोट डालने का खेल बन जाएगा..

हाँ,
मेरी महबूब
यकीन मानो
मैं दुनिया के तमाम ग़मों को भूलकर
उस वक़्त भी तुमसे करूँगा प्रेम
जब देश का सबसे बुरा वक़्त चलेगा,
उस वक़्त भी जब देश घिरा होगा
नव-उदारवाद के अनगिनत कुप्रभावों से,
क्योंकि हमारा प्रेम ही होगा
उस विपरीत परिस्थितियों में
जो हमें शक्ति देगा
इन सबसे लड़ने का
वतन को सुरक्षित रखने का..

मेरी महबूब
मैं ताउम्र करूँगा तुमसे प्रेम
क्योंकि
प्रेम दुनिया का सबसे खूबसूरत क्रांतिकारी विचार है।

©नीतीश

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