मेरे शहर के इदरीस चाचा,
अब भी गंजी पहने
शर्ट को कंधे पर रखकर
अपनी छोटी सी पहिये वाली दुकान में
सभी औजार को एक बक्से में बन्द कर
करते हैं इंतेज़ार
किसी पंचर हुई साईकल के आने का
इतने सालों में कुछ नहीं बदला
मुफलिसी के बावजूद
चेहरे पर खुशी
और मुंह में चबाते पान
हाँ लेकिन
उनकी पहिये वाली दुकान का पिछला भाग
अब नहीं बचा है
इसलिए अब वो घर जाते वक़्त
औजार का बक्सा साथ ले जाते हैं
बचपन में उनकी दुकान
खुद की दुकान लगती
दस का पंचर
आठ में बनाकर
पाँच के समोसे के लिए
पैसे जुटाता
इतने दिन हो गए
मैं आठ से अठरह का हो गया
इदरीस चाचा अब भी वहीं हैं
उनकी दुकान वैसी ही है
और वो भी
इन आठ से अठरह के दौरान
शहर के कई छोटे दुकान
अब बड़े हो गए हैं
लेकिन उन बड़े दुकानों के पास
इदरीस चाचा नहीं हैं
इस शहर को
उन बड़े दुकानों को
सब को
इदरीस चाचा चाहिए
क्योंकि शहर कुछ नहीं है
शहर तो इसलिए शहर है
क्योंकि अब भी
किसी चौक पर
कोई इदरीस चाचा
किसी बच्चे के सपनों के
बचत योजना में कुछ सिक्के
बिना बताए दे रहे होंगे.
✍️ नीतीश
अब भी गंजी पहने
शर्ट को कंधे पर रखकर
अपनी छोटी सी पहिये वाली दुकान में
सभी औजार को एक बक्से में बन्द कर
करते हैं इंतेज़ार
किसी पंचर हुई साईकल के आने का
इतने सालों में कुछ नहीं बदला
मुफलिसी के बावजूद
चेहरे पर खुशी
और मुंह में चबाते पान
हाँ लेकिन
उनकी पहिये वाली दुकान का पिछला भाग
अब नहीं बचा है
इसलिए अब वो घर जाते वक़्त
औजार का बक्सा साथ ले जाते हैं
बचपन में उनकी दुकान
खुद की दुकान लगती
दस का पंचर
आठ में बनाकर
पाँच के समोसे के लिए
पैसे जुटाता
इतने दिन हो गए
मैं आठ से अठरह का हो गया
इदरीस चाचा अब भी वहीं हैं
उनकी दुकान वैसी ही है
और वो भी
इन आठ से अठरह के दौरान
शहर के कई छोटे दुकान
अब बड़े हो गए हैं
लेकिन उन बड़े दुकानों के पास
इदरीस चाचा नहीं हैं
इस शहर को
उन बड़े दुकानों को
सब को
इदरीस चाचा चाहिए
क्योंकि शहर कुछ नहीं है
शहर तो इसलिए शहर है
क्योंकि अब भी
किसी चौक पर
कोई इदरीस चाचा
किसी बच्चे के सपनों के
बचत योजना में कुछ सिक्के
बिना बताए दे रहे होंगे.
✍️ नीतीश
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