बुरजुवाज की प्रोलिटेरियेट


                  बुरजुवाज की प्रोलिटेरियेट
                                    (1)

भोरे-भोर मिश्री ऋषिदेव चिल्लाते हुए बामन झा के दरवाजे पर पहुंचता है.बामन झा छत पर खटिया पर सो रहे थे. धोती समेटते वो धड़फड़ा कर जैसे तैसे उठते हैं और छत पर से ही मिश्रीया को गड़ियाते-गड़ियाते नीचे उतरते हैं.
"का हो गया है जो इतना चिल्लाता है",बामन झा.
मिश्रीया बामन झा को देखकर पहले डरता है और फिर सर झुकाकर खड़ा हो जाता है.
"अब बताओगे भी कि क्या हुआ जो भोरे भोर हमरा नींद हराम कर दिए", बामन झा.
साब,वो प्रेरणा बिटिया...
क्या प्रेरणा बिटिया..
साब उ प्रेरणा बिटिया और हमर हीरानन्द दोनों अपन दरवाजे पर बैठल छे.
प्रेरणा तुम्हारे दरवाज़े पर..अरे ओ प्रेरणा की माँ..सुनती हो..प्रेरणा शहर से कब आई..तुम बतायी नहीं..
अंदर से बामन झा की अर्धांगनी निकल कर आती है और
मिश्रीया की तरफ तुच्छ भरी नज़र से देखते हुए प्रश्नात्मक लहजे में बोलती है,'प्रेरणा शहर से आ गई?

आ गई..तुम्हें पता नहीं है..ई मिश्रीया बोल रहा है कि वो इसके यहाँ बैठी हुई है..लगता है तुम्हरी बिटिया बुरजुवाज की प्रोलिटेरियेट हो गयी है..घर से पहले गाँव में अन्निहिलाशन ऑफ कास्ट करने चली गयी, बामन झा बहुत ही गुस्से में बोल रहा था.
का रे मिश्रीया..हमर बिटिया को कुछ इधर उधर नहीं न बोल रहा है..और तुम्हरा हीरानन्द कब आया कालिज से..
उ दोनों साथे में एल छे कालिज से, मिश्री.
साथे में..,बामन की पत्नी के मष्तिष्क में शक़ की सुई बड़े वेग के साथ घूमने लगती है.

"उ दोनों बियाह कैर लेलकै ये", मिश्री ऋषिदेव.
(ये हमारे गाँव के पास के एक गाँव के टोले के बाहर लगा साइन बोर्ड है.)

इससे पहले कि मिश्री ऋषिदेव पर झा जी के सवालों के साथ-साथ लात-घुसा पड़ना शुरू होता तब तक प्रेरणा और हीरानन्द बामन झा के दरवाजे पर पहुँचते हैं. प्रेरणा की माँग में हल्की सी सिंदूर लगी थी और हीरानंद साधारण कपड़े में प्रेरणा के बगल में खड़ा था.

बामन झा असमंजस में थे कि बेहोश पड़ी अपनी पत्नी के चेहरे पर पानी छींटे या डंडा-आरी-दबिया-बाँस के फट्टा से हीरानंद और उसके बाप की ओकात बताए.

देखते देखते ये खबर पूरे ब्राह्मण टोला में फैल गयी. ब्राह्मण टोला से रिसते हुए और वैदिक मंत्रो के जाप से परिपूर्ण होते हुए खबर यादवों के बस्ती तक पहुँच गयी थी. वहाँ से कुछ यह खबर गौ-रस का पान करते हुए राजपूत के महलों से टकराई तो सब हड़बड़ा गए.महलों में कुछ दरारें पड़ने लगी. महलों से टकराते हुए खबर घोषिन टोला फिर चमार टोला से होते हुए गांव की हटिया पर घूमने लगी और फिर खबर पीपल के पेड़ के पत्तों में घुस गयी और हर आने-जाने वाले के ज़ुबान पर एक ही बात...ई ते गज़ब भै गेले..आब कि हेते..

                               (2)

गाँव में तो ये बात फैलने में देर नहीं लगती है कि फलनवा के लैट्रीन का हौदा भर गया है तो यह ख़बर तो ऐतिहासिक थी, इस बात के फैलने में देरी कैसे होती. केवल एक गाँव नहीं बल्कि आसपास के कई गाँवों में खबर दावानल की तरह फैल गयी थी.
झा जी को कुछ सूझ नहीं रहा था. झा जी की अर्धांगनी तो होश में आती और अपनी बेटी के माँग में सिंदूर देखकर फिर से बेहोश हो जाती. धीरे-धीरे झा जी के दरवाजे पर पूरा माहौल बन रहा था.
यह बात सुनते ही कि हीरानन्द ने प्रेरणा से शादी कर ली है, गाँव के सारे आशिकों के चेहरों पर चमक आ गयी.
अब तक किसका टाँका कहाँ-कहाँ भिड़ा था तो कोई अनुमान भी नहीं लगा सका था.

रामावतार सिंह का बेटा मुरारी उर्फ छोटे नेता को यादव टोले के पवन यादव की बेटी कंचन कुमारी पर दिल आया हुआ था. अब पवन यादव के ही बड़े भ्राता श्री बेचन यादव के कनिष्ठ पुत्र लालमोहन का नैन-मटक्का मेहता टोले की पुष्पा से चल रहा था. चमार टोले के उपेन राम की बेटी कई दिनों से सो नहीं पा रही थी क्योंकि उसके सपने में आज-कल शंभू ऋषिदेव का बेटा हिंदी गाने का मैथिली मिक्स रैप वर्ज़न गा रहा था. गाने के बोल कुछ इस प्रकार थे, "हम तुम एगो कमरा में बन्द चिये,अउर चाभी खोय गेले।"

यह सब तो एकदम दोनों तरफ से दिल-धड़के वाला प्रेम था. एकतरफा प्रेम तो ऐसे खोल रहा था जैसे बीरनी के खोता में बीरनी. गाँव के कई लड़के तो दूसरे-तीसरे गाँव में भी अपना दिल हार बैठे थे.

गाँव के युवाजनों में व्याप्त इतना निश्छल प्रेम, लेकिन हिम्मत किसी की नहीं कि प्रेम को विवाह में परिणित करने की क्रांति कर सकें.

उधर झा जी के दरवाजे पर सबके जाति का गौरव देखने को मिल रहा था. कोई प्रेरणा को लेकर झा जी को कोस रहा था कि बेटी को इतनी दूर क्यों भेजे पढ़ने के लिए, तो वहीं राजपूत टोले के कई मूँछ पर ताव देने वाले खूब खुश थे. यादव टोले का दहियार सुबह से भैंस दुहना छोड़कर झा जी के दरवाजे पर खूंटी जमाए बैठा था.

राजपूत लोग कुछ करने को तैयार नहीं दिख रहे थे.सहसा यादवों ने बीड़ा उठाया. बेचन यादव ने हीरानंद को पीछे से एक लात मार कर औंधेमुँह गिरा दिया. उधर एक दूसरे यादव ने उसके हाथ को पीठ के पीछे कर रस्सी से बाँध दिया. हीरानंद जमीन पर लेटे-लेटे कराह रहा था. यादवों की इस सक्रियता पर राजपूत को कोई नपुंसक न समझ ले इसलिए कुछ राजपूत उठे और मिश्री ऋषिदेव को बांध कर एक-दो घुसों का प्रसाद चढ़ा दिया.

(कहानी लिखते वक्त ये घटना घटी थी.ये पूरी कहानी इन्हें ही समर्पित है)

इधर प्रेरणा को उसकी माँ जो अब बेहोश हो-हो कर थक चुकी थी, उसे घसीट कर कमरे में बन्द करने ले गई.

अब गाँव के बुद्धिजीवी वर्ग के कुछ लोगों ने एक रामबाण सुझाव दिया कि इन लोगों को गाँव से बेदखल कर दिया जाए और जल्द से जल्द प्रेरणा की दूसरी शादी अपनी ही बिरादरी में कर दी जाए.
सबने एक सुर में हाँ-हाँ मिलाई की इस क्रांतिकारी प्रेम को गाँव से बाहर किया जाए.

हीरानंद और प्रेरणा के सारे सपने चूर-चूर होते दिख रहे थे. उनके द्वारा पढ़ी गयी सारी थ्योरी, प्रैक्टिकली मटियामेट हो रही थी. वो दोनों चाहते तो शादी करके घर नहीं आते लेकिन उन दोंनो ने एक अलग ही रास्ता चुना था.सत्य के रास्ते प्रेम को स्वीकृत करवाना.वो समाज में जाति की जंज़ीरों को तोड़कर हर उस महापुरुष के सपने को जीना चाहते थे, जिन्होंने संविधान रचते हुए बालिगों को मर्ज़ी से विवाह करने की आज़ादी दी थी.

हीरानन्द गाँव छोड़कर अपने पिता मिश्री के साथ निकल रहा था. जब वह दस वर्ष का था तभी उसकी माई संसार छोड़ कर जा चुकी थी. माँ को कौन सी बीमारी थी कभी पता ही नहीं चल पाया, क्योंकि उसे डॉक्टर के पास ले जाने तक का पैसा नहीं था और जब पैसा हुआ तब समय नहीं था. मिश्री ने खून-पसीने की कमाई से बेटे को पढ़ाया था.

उधर प्रेरणा अपने घर के कमरे में बन्द कुछ और ही योजना बना रही थी. दोनों में अंतर भी तो था। प्रेरणा को पाश ज्यादा पसंद थे तो वहीं हीरानंद साहित्य में ज्यादा रूचि नहीं रखता था.

ये ख़बर सुनते ही गाँव के सारे आशिक़ तुरंत मुरारी की कामत पर जमा हो गए. उनलोगों ने हीरानंद को गाँव नहीं छोड़ने के लिए मना लिया. सभी आशिक़ गाँव के बुजुर्गों के द्वारा लिए गए इस फैसले से गहरे नाराज़ चल रहे थे. शायद वो लोग कुछ अलग करना चाहते थे. हीरानंद को बीच में बिठाकर सब लड़के उसके आसपास बैठ गए.

                                (3)

मुरारी- भैया आपको गाँव छोड़ के जाने की कोई ज़रूरत नहीं है।

लालमोहन- हाँ..हाँ..और प्रेरणा की कोई दूसरी शादी भी नहीं होगी। उसकी शादी आपसे हुई है और वो इस जनम में आपही की पत्नी रहेगी।

हीरो (ये वही शंभू ऋषिदेव का बेटा है जो उपेन राम की बेटी के सपनों में हिंदी गाने का मैथिली मिक्स रैप वर्जन गाता है)-- अरे ई एक जनम क्या..हमर हीरानंद भयारी ते सात जनम तक प्रेरणा भाभी के संग रहते।
गाँव के सारे नवयुवक--हाँ,हाँ सात जनम तक।

हीरानंद जो अबतक गहरी निराशा में डूब चुका था, नवयुवकों की जोशीले बातों को सुनकर ऐसा प्रसन्न हुआ जैसे एक किसान भीषण गर्मी के बाद पहली बरसात देख कर होता है।

एक अक्लमंद युवक- लेकिन ये होगा कैसे? लालमोहन तुम जो बहुत उछल रहे हो, तुम्हें पता है तुम्हरे बाप ने ही हीरानंद भाई को दुलत्ती मार कर गिराया था। और मुरारी भैया आप तो बहुत फूले जा रहे हैं लेकिन मिश्री काका को तो आपही के चचा ने पीटा था। क्या आप लोग अपने घरवालों के खिलाफ जाएंगे??

कुछ देर पहले वातावरण में जो जोश का संचार था वो सब फीका होता दिख रहा था पहली बारिश के बाद वाले उमस जैसा।

सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना..हीरानंद धीरे धीरे से बुदबुदाते हुए..

मुरारी--भैया थोड़ा जोर से बोलिए।

हीरानंद-- हमदोनों ने मिलकर एक सपना देखा था, मैं जब भी हमारे भविष्य को लेकर चिंतित रहता था तो प्रेरणा मुझे ये पंक्ति सुनाती थी। वो बोलती थी कि पाश कहते हैं," सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना"। वो पाश को बेहद पसंद करती है और उनकी इस पंक्ति को मैं बहुत पसंद करता हूँ।

(हीरानंद सबकी तरफ देखते हुए)- चलो उठो अब हम अपने सपने को नहीं मरने देंगे। अब हमें अपने सपने को जीना है। अब हमें प्रेरणा के सपने को जीना है। अब हमें अम्बेडकर के सपने को जीना है, हमें गांधी को जीना है. कुछ चीजें समाज में इतनी गहरी जड़ें जमा लेती हैं कि बग़ावत का खुरपा चलाना ही पड़ता है।

लालमोहन- हाँ भैया हम बगावत कर देंगे। आपके सपने को हम भी जिएंगे। प्रेम की जीत होगी, जाति-पाति कुछ नहीं रहेगी।

सभी नवयुवक-- हाँ,हाँ, प्रेम की जीत होगी।

हीरानंद- तुम सभी नवयुवक जो इस लड़ाई में साथ हो, वो एक टोली बनाओ और सीधे झा जी के दरवाजे पर चलो, वहाँ से सबसे पहले हम प्रेरणा को आजाद कराएंगे और फिर हम लोग आगे की योजना उसके साथ मिलकर बनाएंगे।

नवयुवकों की पूरी एक टोली मुरारी के कामत से निकलती है। ये एक नई शुरुआत थी। पूरी टोली नारा लगते हुए निकलती है..
"जाति की जंज़ीरें तोड़ेंगे,प्रेम का पताका लहराएंगे"
हीरानंद जोर से बोलता,,,इश्कमेव
पीछे से आवाज आती..जयते
इश्कमेव जयते..इश्कमेव जयते..
किसी ने धीरे से नारा लगाया.. "नून रोटी खाएंगे, प्रेम ध्वजा लहरायेंगे", साथियों की चपत ने उसे शान्त किया।
(ये दिल्ली में हुई प्राइड मार्च की फ़ोटो है.)

टोली जब यादव टोले से गुजरी तो मुरारी की आंखें कंचन से मिल गयी..दोनों इशारों इशारों में एक दूसरे के गले में माला पहना रहे थे। अब टोली मेहता टोले से गुजर रही थी..जैसे पुष्पा को सब खबर थी वो अपने दरवाजे से लालमोहन का क्रांतिकारी चेहरा देखकर ऐसे लजा गयी मानो आज ही शहर से सैयां आए हों। उधर इश्कमेव जयते के नारों से ऋषिदेव टोला, चमार टोला की सभी जलानी-औरतें-लड़कियाँ सड़कों पर आ गयी थी। उपेन राम की बेटी हीरो को देखकर फूले नहीं समा रही थी। इसबार भी गाना हिंदी ही था और मैथली मिक्स्ड रैप वर्शन में बोल कुछ इस प्रकार बन रहा था,"तोरा से मिले के दिल करे छो रे छोरा..तोरा से मिले के दिल करे।"

इश्कमेव जयते के नारे लगाते हुए टोली झा जी के दरवाजे पर पहुंच जाती है, प्रेरणा खिड़की से देखती है और हीरानंद को देखकर प्रफुल्लित हो जाती है। सभी नवयुवक पूरे जोश में नारा लगा रहै हैं। धीरे-धीरे झा जी के दरवाजे पर लोगों की भीड़ उमड़ जाती है। कुछ युवक हीरानंद के साथ जाकर प्रेरणा को कमरे से बाहर निकाल लाते हैं। गाँव के उम्रदराज लोग ये सब देखकर भौंचक्के रह जाते हैं।

हीरानंद प्रेरणा का हाथ पकड़ कर दरवाजे के एक कोने पर पहुंच जाता है और उसके साथ-साथ गाँव के सभी नवयुवक भी। अब गाँव के सभी नवयुवक एक साथ एक ओर तो वहीं दूसरी तरफ सभी उम्रदराज़ लोग जिन्होंने 'गाँव निकाला' फैसले को समर्थन दिया था वो एक तरफ।

हीरानंद बोलना शुरू करता है-- मेरे गाँव के अघोषित बुर्जुवाज!! मैंने प्रेरणा से मोहब्बत की है और उसने हमसे..। हमने शादी की है। हमारा संविधान हर बालिग को इज़ाज़त देता है कि वो अपनी सहमति से अपना जीवन साथी चुन सके।

(सभी के कान खुल गए थे। झा जी के दरवाजे पर बैठी एक गाय भी पागुर छोड़ क्रांतिकारियों की ओर देखने लगी। उनके घर में पड़ा अठारह पुराण सहम गया था।
गाँव के सब मवेशी शान्त हो चुके थे। पेड़ की पत्तियों ने अपने ऊपर पड़े धूल को उड़ाया और नई हवा ने उसमें पत्ती की मदद की। गाँव के गड़े मुर्दे भी सुनने को आये थे, शायद उनकी रूह में दफन हो चुका प्रेम उन्हें यहाँ बुला लाया था, क्योंकि प्रेम अमर है।)

तुम लोग अपनी अपनी जाति से जो इतना चिपके हो, तुम्हारा ये चिपकना एक दिन तुम्हें इतिहास में भी जगह नहीं देगा। अब जाति को छोड़ दो और मानवीय गुण की पूजा करो। तुम्हारे पास खेत है,प्रेम की खेती करो, जिसकी फसल से हमारी नस्लें धरती की सबसे श्रेष्ठ नस्लें बनेंगी।
मैं प्रेरणा के साथ मिलकर इस गाँव में अपने सपने को जीना चाहता हूँ। ये नवयुवक हमारे साथ हैं। आज आपके पास दो रास्ते हैं या तो आप हमें स्वीकार मत कीजिये या फिर स्वीकार कर लीजिये, पर हमारा आगे बढ़ना तो निश्चित है लेकिन हम इस क्रांतिकारी काम में आपका साथ चाहते हैं। मैं चाहता हूँ कि हमारा गाँव एक आदर्श बने।

गाँव के सभी नवयुवक- "जाति की बंदिशें तोड़ेंगे,प्रेम का पताका लहराएंगे"
प्रेरणा--इश्कमेव
सब- जयते
इश्कमेव जयते...इश्कमेव जयते..इश्कमेव जयते..

                                (4)

गूंजते नारों के बीच सभी लोग उठ कर आगे बढ़ने लगे। जाति की इतनी पुरानी बंदिशों को केवल एक जोशीले भाषण या कुछ नारों से तोड़ देना इतना आसान तो नहीं ही था। प्रेरणा और हीरानंद दोनों झा जी के चरणों पर झुककर प्रणाम करते हैं। झा जी आशीर्वाद स्वरूप केवल खामोशी प्रदान करते हैं। प्रेरणा की माँ के हाथ झुकते दंपति को केवल आंसू से दुआएं देते है।
हीरानंद और प्रेरणा गाँव के सभी नवयुवकों के साथ झा जी के दरवाजे पर से चलते हैं। गाँव की कुछ लड़कियाँ भी उनके साथ हो जाती है। आश्चर्य है कि, आज उन लड़कियों को उनकी माई ने नहीं रोका।

सबलोग बैठे हुए थे। हीरानंद ने बोला कि हम एक नया गाँव बनाएँगे। वो गाँव हमारे सपनों का गाँव होगा। हम वहाँ बच्चों को पढ़ाएंगे, उन्हें शिक्षा देंगे, नए पौध लगाएंगे जिसके फल सभी खाएंगे और कोई उनसे ये नहीं पूछेगा कि "तुम्हारा पूरा नाम क्या है"। हम सब अपने नाम से अपनी जाति हटा लेंगे।
मुरारी ने कहा, "मैं अपनी जमीन दूँगा हीरानंद भैया।"
लालमोहन ने कहा, "मैं भी दूँगा।"
सब युवाओं ने कहा-- और हम सब उसमें विद्यालय के भवन बनाएँगे.
लड़कियों ने भी कहा- हाँ..हाँ..हम सब भी ईंटें जोड़ेंगीं।

तभी कहीं दूर से गाय ने जोर से आवाज लगाई...म~अ~आ~
सबको सुनाई दिया- हाँ~....। अब तो गौ माता ने भी सहमति दे दी थी जिससे इस क्रांति की वैधानिकता सिद्ध हो गई।

मुरारी कंचन को कंचन मुरारी को, लालमोहन पुष्पा को पुष्पा लालमोहन को देख रही थी। उपेन राम की बेटी आज जब प्रत्यक्ष तौर पर अपने सपने में गाना गाने वाले से मिली तो उसे पता चला कि हीरो को तो गाना आता ही नहीं है।

प्रेरणा और हीरानंद दोनों एक-दूसरे का हाथ थाम कर अपने सपने को गाँव को देख रहे थे। प्रेरणा गुनगुनाने लगी," माँग के साथ तुम्हारा,मैंने माँग लिया संसार"।

फिज़ा में प्रेम घुल गया था। पेड़ ने अपने पत्तियों पर सदियों से जमी धूल को एकबार फिर से साफ किया। गाँव के गड़े मुर्दे अब अफसोस कर रहे थे कि काश यह बगावत वे कर पाते। झा जी के दरवाजे पर बैठी गाय ने सड़क से गुजरते हुए उपेन राम के बैल को जी भर कर देखा और प्यारी सी जुगाली कर कुछ इशारे सा किया। इधर गाँव के सारे बच्चे आपस में झगड़-झगड़ कर खेल रहे थे। वो लोग उन गिरे हुए साइन बोर्डों पर उछल रहे थे जिनमें लिखा था ब्राह्मण टोला,मेहता टोला,यादव टोला,मुसहर बस्ती...। सभी नवयुवक असमंजस में थे कि साइन बोर्डों को किसने उखाड़ा...
शायद गाँव के उम्रदराज लोग...

समाप्त.🙏

( The Real remedy for breaking the caste is Inter-marriage.Nothing else will served as the solvent of caste--Ambedkar)

Comments