बगैर उन्वान के




ओ मेरी प्रिया
एक लेखक कवि शायर से प्रेम करने से पहले
सोचना
कि
हो सकता है वो जैसा लिखता होगा
वो वैसा नहीं होगा
हो सकता है उसकी कविताओं में
वो स्त्री की जिस रूप में कल्पना करता है
वो स्त्री को वैसा नहीं समझता होगा
हो सकता है
उसकी क्रांति की कविताएं
केवल तुम्हारे मनोभाव को जीतने के लिए लिखी गयी हो
ये भी हो सकता है
कि उसकी प्रेम की कविताओं में
तुम्हें मिलने वाली आज़ादी
वास्तव में कभी नसीब ही नहीं हो

किसी स्त्री को
किसी लेखक से प्रेम करने से पहले
सोच लेना चाहिए
कि लिखावट की दुनिया
कल्पना की दुनिया
उम्मीदों पर बनती है
और उम्मीद..
मेरी प्रिया
दुख का सबसे बड़ा कारण है.

प्रेम में क्या चाहिए?
केवल वो क्षण जो हमें एकांत दे
ताकि मैं तुम्हारी देह को उर्दू के कुछ चुनिंदा
लफ़्ज़ों से तारीफ करूँ?
क्या इसी क्षण को जी लेना सच्चा प्रेम है?
मेरी प्रिया,
हम जब किसी एकांत में मिल रहे होते हैं
ढ़ेर सारी उलझनों को धुआँधार
एक दूसरे के सामने बयाँ कर देने को
तो दरअसल हमें मिलाने में
अप्रत्यक्ष तौर पर अनेक लोग
भागीदार होते हैं.
तो क्या हमारा प्रेम इतना स्वार्थी है
कि उनकी उलझनों पर कोई चर्चा न करे?
और क्या बिना उनकी चर्चा किये
हम सच्चे प्रेमी कहलायेंगे?

ओ मेरी प्रिया
हम जब मिलेंगे
किसी नदी किनारे तो क्या हमारी बातचीत में
ये जिक्र नहीं होगा
कि शायद ये सुनहरा शाम हमारे बच्चों को नसीब नहीं हो
कि शायद कुछ वर्षों बाद यहाँ शाम के वक़्त धुंए की एक परत जम जाए?
कि कुछ वर्षों में ये कल-कल करती नदियां सूख जाए
या इसमें चलने वाली ये नाव और इसके मल्लाह
अपनी जीविका के लिए इस शहर से पलायन कर जाए
पलायन...मेरी प्रिया
किसी अपने का छोड़ के जाना कितना दुःखद होता है न!
हम जब मिलेंगे
किसी किसान के खाली खेत में
तो क्या हम ये जिक्र नहीं करेंगे कि
क्यों किसान को फसल का वाज़िब दाम नहीं मिला?
हम जब मिलेंगे
किसी डूबते हुए आफ़ताब को देखने
तो ये जिक्र होना चाहिए
कि इस सूरज के डूबने के साथ ही
कितनी ही लड़कियां बन्द हो जाती है
किसी दरवाजे के भीतर
अपने सपनों को अपने सीने में दफना कर
और बेलने लगती है रोटियाँ

मेरी प्रिया
हम जब मिलेंगे
तो हमारी बातों में केवल मैं और तुम नहीं होंगे
बल्कि हम चर्चा छेड़ेंगे
कश्मीर की हसीन वादियों को रक्तरंजित करने वाले
मानवता के दुश्मन का
हम उन अंतर्विरोधों की बात करेंगे
जो हिन्दू और मुस्लिम के बीच वैमनस्य का कारण बना हुआ है
हम उन सुझावों पर अमल करने की प्रतिज्ञा करेंगे
जो इस पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग की उपजी हुई विभीषिका से बचाए
हम आत्महत्या करते किसानों के द्वारा नहीं चुकाए गए ऋण की गणना करेंगे
और तय करेंगे कि ऋण ज्यादा था या उस किसान की वो फसल जिसने न जाने कितनों की भूख ख़तम की
भूख..मेरी प्रिया
पेट की भूख तो समझ आती है
उनकी मानसिकता को कौन टटोलेगा
जिन्हें हवस की भूख है.

ओ मेरी प्रिया
यदि तुम्हारा साथ हो तो
हम मिलकर करेंगे प्रेम की खेती
और उगाएंगे नए पौध
जिसके नीचे बैठ कर करेंगे
हमारे बच्चे प्रेम की बातें
यदि तुम्हारा साथ हो तो
हम जाएंगे हिमालय की चोटियों पर
और साफ करेंगे नदी के उद्गम स्थलों से
सब अवरोधों को
ताकि ये नदियां ऐसे ही कल-कल गीत गाती रहे
यदि तुम्हारा साथ हो तो
हम थाम कर एक-दूसरे का हाथ
बन जाएंगे पहरेदार
उन लड़कियों की जो बन्द हो जाती है
दरवाज़े के भीतर
और हम अपने प्रेम से पैदा हुए विश्वाश से भर देंगे
उनके सपनों के पंखों को
यदि तुम्हारा साथ हो
मेरी प्रिया
तो हम कुपोषण से मर रहे बच्चों के पेट में
निवाला देंगे ज्ञान का
हिम्मत देंगे सवाल करने का ताकि
वो छीन सके अपना हक़ जो उससे छीनता है उसका हक़.

मेरी प्रिया
ये क्रांति वाले इश्क़ की यात्रा बहुत मजेदार है
है न?
लेकिन आसान नहीं
वैसे ही जैसे एक लेखक कवि शायर
की कल्पना की दुनिया का सच होना
आसान नहीं है.

©नीतीश

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