जब तुम वापस लौटोगी
तो क्या तबतक वो ज़ख्म
भर चुके होंगे
उन माओं के
जिसका बेटा भरी ज़वानी में मारा गया
किसी धार्मिक उन्मादियों के वार से
और उस पिता की उम्मीद
कि बुढ़ापे में बेटा लाठी बनेगा
और उस बहन का क्या
जो अब भी राखी की थाली सजाया करती है
तुम्हारे जाने और आने के बीच का
फासला मुझे पता है
लेकिन मेरे पास तो तुम्हारे वो आखिरी शब्द हैं कि
"मैं वापस आऊँगी"
प्रिये,
मैं बात कर रहा हूँ
युद्ध प्रभावित उन क्षेत्रों के बच्चों के बारे में
जो इंतज़ार कर रहा है
अपने पिता का कि
एक दिन वो उसे ले जाएंगे स्कूल
जहाँ वो सीखेगा कि
कैसे किसी युद्ध का जन्म
कइयों के जिंदगी के अंत की शुरुआत होटी है।
युद्ध में बेशक़ आमने सामने वाले शत्रु हों
लेकिन प्रिये,
उन दोनों के बच्चे का
उनकी प्रेमिका का
उनके माओं का
उनके पिता का
अपने पापा,प्रेमी,बेटा के लौटने के इंतेज़ार
में गहरी दोस्ती होती है
उनके दुःख एकसमान होते हैं
वो एकसमान ही
एक ही तरीके से
रेडियो,
टीवी,
सूचना के तंत्रों के पास
अपने कान लगाए रहते हैं
जहाँ राष्ट्र का मुखिया घोषणा करेगा
कि युद्ध कब ख़तम होगा
प्रिये,
क्या युद्ध खत्म होने के बाद सचमुच युद्ध खत्म हो जाता है?
जैसे तुम्हारे लौटने के बाद भी
तुम्हारा फिर से चले जाने का दुःख कभी खत्म नहीं होता है।
जब तुम वापस आओगी तो
क्या तब तक
युद्ध में गए सभी सैनिक
वापस लौट आएंगे..
क्या ख़तम होगा
सभी माओं का इंतेज़ार..
क्या उनकी प्रेमिका भी
सहला पाएंगी अपना हाथ
प्रेमी के माथे पर..
और क्या बचा रह पायेगा
उस पिता की उम्मीद
कि बेटा लाठी बनेगा मेरा..
प्रिये,
अबकी बार जब तुम वापस आना
तो ढ़ेर सारी मोहब्बत लाना
मेरे लिए
जो कभी ख़तम न हो
तुम्हारे चले जाने के बाद भी
जैसे सैनिक छोड़ जाते हैं
उम्मीद
मोर्चे पर जाने से पहले।
©नीतीश
तो क्या तबतक वो ज़ख्म
भर चुके होंगे
उन माओं के
जिसका बेटा भरी ज़वानी में मारा गया
किसी धार्मिक उन्मादियों के वार से
और उस पिता की उम्मीद
कि बुढ़ापे में बेटा लाठी बनेगा
और उस बहन का क्या
जो अब भी राखी की थाली सजाया करती है
तुम्हारे जाने और आने के बीच का
फासला मुझे पता है
लेकिन मेरे पास तो तुम्हारे वो आखिरी शब्द हैं कि
"मैं वापस आऊँगी"
प्रिये,
मैं बात कर रहा हूँ
युद्ध प्रभावित उन क्षेत्रों के बच्चों के बारे में
जो इंतज़ार कर रहा है
अपने पिता का कि
एक दिन वो उसे ले जाएंगे स्कूल
जहाँ वो सीखेगा कि
कैसे किसी युद्ध का जन्म
कइयों के जिंदगी के अंत की शुरुआत होटी है।
युद्ध में बेशक़ आमने सामने वाले शत्रु हों
लेकिन प्रिये,
उन दोनों के बच्चे का
उनकी प्रेमिका का
उनके माओं का
उनके पिता का
अपने पापा,प्रेमी,बेटा के लौटने के इंतेज़ार
में गहरी दोस्ती होती है
उनके दुःख एकसमान होते हैं
वो एकसमान ही
एक ही तरीके से
रेडियो,
टीवी,
सूचना के तंत्रों के पास
अपने कान लगाए रहते हैं
जहाँ राष्ट्र का मुखिया घोषणा करेगा
कि युद्ध कब ख़तम होगा
प्रिये,
क्या युद्ध खत्म होने के बाद सचमुच युद्ध खत्म हो जाता है?
जैसे तुम्हारे लौटने के बाद भी
तुम्हारा फिर से चले जाने का दुःख कभी खत्म नहीं होता है।
जब तुम वापस आओगी तो
क्या तब तक
युद्ध में गए सभी सैनिक
वापस लौट आएंगे..
क्या ख़तम होगा
सभी माओं का इंतेज़ार..
क्या उनकी प्रेमिका भी
सहला पाएंगी अपना हाथ
प्रेमी के माथे पर..
और क्या बचा रह पायेगा
उस पिता की उम्मीद
कि बेटा लाठी बनेगा मेरा..
प्रिये,
अबकी बार जब तुम वापस आना
तो ढ़ेर सारी मोहब्बत लाना
मेरे लिए
जो कभी ख़तम न हो
तुम्हारे चले जाने के बाद भी
जैसे सैनिक छोड़ जाते हैं
उम्मीद
मोर्चे पर जाने से पहले।
©नीतीश
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