बहुत बहुत स्वागत है मित्रों,
आपके ज़िन्दगी के तीन सबसे स्वतंत्र वर्षों में प्रवेश पाने की खुशी के स्वागत उत्सव में।
आप उन हज़ारों लोगों के भीड़ में से चंद चेहरे हैं जिन्हें भारत के तीसरे सबसे बेहतरीन विश्विद्यालय के सबसे बेहतरीन छात्रावास में बैठने का मौका मिला है। आपको खुद पर गौरवान्वित महसूस होना चाहिए कि आप उस विश्विद्यालय में पढ़ रहे हैं जिसने राष्ट्र निर्माण में महती भूमिका निभाई है। उस विश्विद्यालय में जिसने इस देश को कई भारत रत्न दिए। उस विश्विद्यालय में जिसके निर्माण में सम्पूर्ण राष्ट्र के व्यक्ति की पूंजी लगी है। इस विश्विद्यालय के निर्माण में हैदराबाद के नवाब से लेकर इलाहाबाद के छोटे से दुकान के दुकानदार तक ने अपना योगदान दिया है।
साथियों,
आपकी पढ़ाई से केवल आपके परिवार को उम्मीद नहीं है बल्कि उस रिक्शेवाले को भी उम्मीद है जो आज किसी चौक पर पूरे दिन खड़े रह गया क्योंकि शहर में किसी नेता की रैली के कारण ट्रैफिक को बन्द कर दिया गया था। आपकी पढ़ाई और आपकी इस सुविधा में उस सब्जी वाली चाची का भी योगदान है जो पूरे दिन मेहनत के बावजूद किसी रेस्टोरेंट में जाकर कोल्ड कॉफ़ी नहीं पी सकती है क्योंकि उसे अपने घर में दो बच्चों के फीस जमा करने हैं।
हमारी इस सुविधा में धूप में जलते किसान, ठेला खिंचते मजदूर, किसी फैक्ट्री में मामूली दिहाड़ी पर काम करते असंख्य कामगार, बॉर्डर पर -50 डिग्री की ठंड में बंदूक ताने सैनिकों का भी योगदान है। बस तुम इन तीन वर्षों में खुद को तैयार करना उन सभी लोगों के लिए जिसने तुम्हें अप्रत्यक्ष तौर पर यहाँ पर अध्ययन करने का हक़ दिया है। जब तुम्हारा दीक्षांत होगा तो ऐसा स्नातक बनकर तैयार होना जिसकी आवाज मजलूमों के हक़ के लिए बुलंद हो जो सत्ता की चापलूसी में न जाए।
साथियों,
हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वो दौर बहुत खतरनाक है। आपके दिमागों में विचारों को थोपा जाएगा। आपको संस्कृति के नाम पर रोका जाएगा। धर्म के नाम पर नारे लगवाने के बाध्य किया जाएगा। भावनाओं के उमड़ते सैलाब में आपको भीड़ बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। लेकिन आपको रुकना नहीं है साथी आपको लड़ना है उन अधिकारों के लिए जो संविधान की किताब ने आपको दिया है। आपको लड़ना है उनके लिए जो खुद नहीं लड़ सकते हैं। आपको भिड़ना पड़ेगा सबसे। जो कोई भी तुम्हें रोके तुम्हारे अधिकारों को जीने से तुम भिड़ जाना उससे क्योंकि सत्ता के नशे में चूर लोगों को केवल और केवल इस बात से डर लगता है कि कहीं तुम डरना छोड़ दो तो क्या होगा?
इसलिए साथियों कभी डरना मत। तुम्हारी चुप्पी ही उनका औजार है इसलिए चुप मत रहना।
आप जिस दौड़ से गुजर रहे हैं साथियों यहाँ पर ऐसे लोग मिलेंगे जो प्रेम को संस्कृति के विरुद्ध बताएंगे लेकिन नहीं आप इनकी मत सुनना।
आप उन्हें हबीब जालिब की आवाज में कहना,
"ऐसे दस्तूर को ,सुबहे बेनूर को,
मैं नहीं मानता,मैं नहीं जानता"
आप प्रेम करना क्योंकि प्रेम दुनिया का सबसे खूबसूरत क्रांतिकारी विचार है। अपनी महबूब के हाथों में हाथ डालकर घूमना इस शहर को। चले जाना गंगा के किनारे और घंटों गंगा के पानी में पैर डालकर बैठे रहना और बहस करना अपनी प्रेमिका से कि आखिर क्यों इतनी शक्तिशाली सत्ता भी गंगा को मैली होने से नहीं बचा पा रही है? तुम घूमना इस शहर को जो खुद में समेटता है 3500 से भी पुराना इतिहास,सारनाथ में बुद्ध के शरण में जाना,बिस्मिल्लाह की शहनाई सुनना,राजघाट के खंडहरों में इतिहास को अनुभव करना,लहरतारा में कबीर को जीना, विश्वनाथ गली में भटक जाना और पूछना उनलोगों से कि आखिर क्यों वो शिव को जल चढ़ाने के लिए इतनी मेहनत करते हैं। तुम जाना बनारस के उन मस्जिदों में जहाँ से फतवा निकलता है और पूछना उन धर्म के पंडितों से कि अल्लाह ने कितने फतवे जारी किये थे??
बुनकरों की बस्तियों में जाना और उनकी मशीनों को छूकर उनसे बातें करना और समझना कि कैसे नव उदारवाद ने उनके फलते फूलते कारोबार और उससे लहलहाती उनकी जिंदगी और बनारस की पहचान को तहस नहस कर दिया है?तुम जाना बनारस के उन पतली गलियों में और देखना कि आखिर कैसे लोग वहाँ रहते हैं जहाँ साँस लेने तक की जगह नहीं है और जिस घर में सूर्य की रोशनी तक नहीं पहुंचती है?
तुम्हें इन तीन वर्षों में सवाल करने आ जाना चाहिए। तुम्हें जब कोई कहे कि हमारे वेदों में लिखा है तो तुम वेद पढ़ लेना, तुम्हें जब कोई कहे कि हमारे पुराणों में लिखा है तो तुम पुराण को पढ़ लेना। उपनिषद से लेकर कुरान बाइबिल सबसे रूबरू होना दोस्तों। धर्म के नाम पर तुम्हें सबसे अधिक लामबंद किया जाएगा। या तो धर्म अफीम है कहकर इसे सिरे से नकार देना या धर्म को पढ़कर सभी धर्म के उन मूल्यों को खोज निकालना जिसने मानवता को सेलिब्रेट किया है। तुम सबको पढ़ना लोहिया,गांधी,नेहरू,पटेल,टैगोर,भगत,प्रेमचंद, सबको। साथियों तुम मार्क्स, ग्राम्सी से लेकर टॉलस्टॉय को पढ़ना। गीतांजलि की कविताओं से लेकर टी.एस.इलियट की कविताओं में फ़ैज़ के नज़्मों में साहिर की ग़ज़लों में पाश के बोलों में अमृता के प्रेम में इमरोज़ के समर्पण में मंटो के अफसानों में इस्मत चुगताई के आजाद ख्यालों में गंगा के उसपार रेत पर जाकर लेट जाना और खो जाना..डूब जाना..
तुम ये जानने की कोशिश करना कि आखिर क्यों राजनीति जब असफल होती है तो वो धर्म को अपना औजार बनाती है? तुम ये सोचना कि आखिर क्यों दुनिया की इतनी सारी शाक्तिशाली संगठन होते हुए भी दो देशों के बीच युद्ध अनिवार्य बनते जा रहा है?
तुम नई चीज़ों को सीखने से कभी मत घबराना। सब कुछ करना। हो सकता है कि तुम असफल होगे हो सकता है तुम टूटोगे लेकिन मजबूत व्ही होता है जो टूटकर फिर से उठना सीख जाए जो जीना सीख जाए। इसलिए नई चीजों को अपनाते रहो।
इन तीन वर्षों में तुम्हें कई लोग ऐसे मिलेंगे जो तुम्हें खीचेंगे अपनी विचारों की तरफ अपने संगठन की तरफ अपने फ़िज़ूल के कामों की तरफ..लेकिन कोई भी काम करने से पहले तर्क और कारण को तरजीह देना। याद रखना दोस्तों कि किस्मत जैसे शब्द केवल और केवल उनके लिए होता है जो लड़ना नहीं जानते हैं। आपको कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना है क्योंकि एडजस्टमेंट हमें हमारे सर्वोत्तम को पाने से रोक देता है। हर उन बंधनों को तोड़ देना जो आपके वजूद को बदलने की कोशिश करे। प्रेम भी उसी से करना जो आपकी मिट्टी को जो आपके सच को जो आपको स्वीकार करे। वो कैफ़ी आज़मी कहते हैं न ," जब मोहब्बत कैद बन जाए तो मोहब्बत से निकल।"
साथियों,
नेहरू ने एक बार कहा था कि यूनिवर्सिटी इज़ अ प्लेस फ़ॉर यूनिवर्स ऑफ़ आइडियाज। बस इन तीन वर्षों में ख़ुद को इतना परिपक्व बनाओ कि तुम व्ही स्नातक बनकर निकलो जैसा मनु ने सूर्य को कहा था कि जिस दिन हमारे स्नातकों का दीक्षांत होगा उस दिन तुम अपने उदय का समय बदल देना क्योंकि हमारे स्नातकों के विचारों की तेज़ में तुम्हारी रोशनी फीकी पड़ जाएगी।
साथियों,
अपने विचार बनाओ। इस दुनिया को देखने का अपना नज़रिया बनाओ। इस दुनिया को जीने का अपना तरीका खोजो। उधार के विचार भूल भी सकते हो। बस यही कहूँगा कि ये तीन वर्ष तुम्हारे ज़िन्दगी के सबसे स्वतंत्र वर्ष हैं इसे ख़ुद की तरक्की के लिए बनाओ और फिर अपनी तरक्की से राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना। और जब भी घबराओ तो बस साहित्य की गोद में जाना तुम्हें असीम ऊर्जा मिलेगी जिंदगी को जीने का।
पड़ोसी मुल्क के एक शायर कहते हैं,
नए दीवानों को देखें तो खुशी होती है
हम भी ऐसे ही थे जब आये थे वीराने में
अगली मुलाक़ात तक के लिए अलविदा।
खूब पढ़ो खूब लड़ो।
खूब घूमो।
खूब तर्क वितर्क करो।
सवाल करने की आदत को ज़िंदा रखो।
✍️ नीतीश
आपके ज़िन्दगी के तीन सबसे स्वतंत्र वर्षों में प्रवेश पाने की खुशी के स्वागत उत्सव में।
आप उन हज़ारों लोगों के भीड़ में से चंद चेहरे हैं जिन्हें भारत के तीसरे सबसे बेहतरीन विश्विद्यालय के सबसे बेहतरीन छात्रावास में बैठने का मौका मिला है। आपको खुद पर गौरवान्वित महसूस होना चाहिए कि आप उस विश्विद्यालय में पढ़ रहे हैं जिसने राष्ट्र निर्माण में महती भूमिका निभाई है। उस विश्विद्यालय में जिसने इस देश को कई भारत रत्न दिए। उस विश्विद्यालय में जिसके निर्माण में सम्पूर्ण राष्ट्र के व्यक्ति की पूंजी लगी है। इस विश्विद्यालय के निर्माण में हैदराबाद के नवाब से लेकर इलाहाबाद के छोटे से दुकान के दुकानदार तक ने अपना योगदान दिया है।
साथियों,
आपकी पढ़ाई से केवल आपके परिवार को उम्मीद नहीं है बल्कि उस रिक्शेवाले को भी उम्मीद है जो आज किसी चौक पर पूरे दिन खड़े रह गया क्योंकि शहर में किसी नेता की रैली के कारण ट्रैफिक को बन्द कर दिया गया था। आपकी पढ़ाई और आपकी इस सुविधा में उस सब्जी वाली चाची का भी योगदान है जो पूरे दिन मेहनत के बावजूद किसी रेस्टोरेंट में जाकर कोल्ड कॉफ़ी नहीं पी सकती है क्योंकि उसे अपने घर में दो बच्चों के फीस जमा करने हैं।
हमारी इस सुविधा में धूप में जलते किसान, ठेला खिंचते मजदूर, किसी फैक्ट्री में मामूली दिहाड़ी पर काम करते असंख्य कामगार, बॉर्डर पर -50 डिग्री की ठंड में बंदूक ताने सैनिकों का भी योगदान है। बस तुम इन तीन वर्षों में खुद को तैयार करना उन सभी लोगों के लिए जिसने तुम्हें अप्रत्यक्ष तौर पर यहाँ पर अध्ययन करने का हक़ दिया है। जब तुम्हारा दीक्षांत होगा तो ऐसा स्नातक बनकर तैयार होना जिसकी आवाज मजलूमों के हक़ के लिए बुलंद हो जो सत्ता की चापलूसी में न जाए।
साथियों,
हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वो दौर बहुत खतरनाक है। आपके दिमागों में विचारों को थोपा जाएगा। आपको संस्कृति के नाम पर रोका जाएगा। धर्म के नाम पर नारे लगवाने के बाध्य किया जाएगा। भावनाओं के उमड़ते सैलाब में आपको भीड़ बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। लेकिन आपको रुकना नहीं है साथी आपको लड़ना है उन अधिकारों के लिए जो संविधान की किताब ने आपको दिया है। आपको लड़ना है उनके लिए जो खुद नहीं लड़ सकते हैं। आपको भिड़ना पड़ेगा सबसे। जो कोई भी तुम्हें रोके तुम्हारे अधिकारों को जीने से तुम भिड़ जाना उससे क्योंकि सत्ता के नशे में चूर लोगों को केवल और केवल इस बात से डर लगता है कि कहीं तुम डरना छोड़ दो तो क्या होगा?
इसलिए साथियों कभी डरना मत। तुम्हारी चुप्पी ही उनका औजार है इसलिए चुप मत रहना।
आप जिस दौड़ से गुजर रहे हैं साथियों यहाँ पर ऐसे लोग मिलेंगे जो प्रेम को संस्कृति के विरुद्ध बताएंगे लेकिन नहीं आप इनकी मत सुनना।
आप उन्हें हबीब जालिब की आवाज में कहना,
"ऐसे दस्तूर को ,सुबहे बेनूर को,
मैं नहीं मानता,मैं नहीं जानता"
आप प्रेम करना क्योंकि प्रेम दुनिया का सबसे खूबसूरत क्रांतिकारी विचार है। अपनी महबूब के हाथों में हाथ डालकर घूमना इस शहर को। चले जाना गंगा के किनारे और घंटों गंगा के पानी में पैर डालकर बैठे रहना और बहस करना अपनी प्रेमिका से कि आखिर क्यों इतनी शक्तिशाली सत्ता भी गंगा को मैली होने से नहीं बचा पा रही है? तुम घूमना इस शहर को जो खुद में समेटता है 3500 से भी पुराना इतिहास,सारनाथ में बुद्ध के शरण में जाना,बिस्मिल्लाह की शहनाई सुनना,राजघाट के खंडहरों में इतिहास को अनुभव करना,लहरतारा में कबीर को जीना, विश्वनाथ गली में भटक जाना और पूछना उनलोगों से कि आखिर क्यों वो शिव को जल चढ़ाने के लिए इतनी मेहनत करते हैं। तुम जाना बनारस के उन मस्जिदों में जहाँ से फतवा निकलता है और पूछना उन धर्म के पंडितों से कि अल्लाह ने कितने फतवे जारी किये थे??
बुनकरों की बस्तियों में जाना और उनकी मशीनों को छूकर उनसे बातें करना और समझना कि कैसे नव उदारवाद ने उनके फलते फूलते कारोबार और उससे लहलहाती उनकी जिंदगी और बनारस की पहचान को तहस नहस कर दिया है?तुम जाना बनारस के उन पतली गलियों में और देखना कि आखिर कैसे लोग वहाँ रहते हैं जहाँ साँस लेने तक की जगह नहीं है और जिस घर में सूर्य की रोशनी तक नहीं पहुंचती है?
तुम्हें इन तीन वर्षों में सवाल करने आ जाना चाहिए। तुम्हें जब कोई कहे कि हमारे वेदों में लिखा है तो तुम वेद पढ़ लेना, तुम्हें जब कोई कहे कि हमारे पुराणों में लिखा है तो तुम पुराण को पढ़ लेना। उपनिषद से लेकर कुरान बाइबिल सबसे रूबरू होना दोस्तों। धर्म के नाम पर तुम्हें सबसे अधिक लामबंद किया जाएगा। या तो धर्म अफीम है कहकर इसे सिरे से नकार देना या धर्म को पढ़कर सभी धर्म के उन मूल्यों को खोज निकालना जिसने मानवता को सेलिब्रेट किया है। तुम सबको पढ़ना लोहिया,गांधी,नेहरू,पटेल,टैगोर,भगत,प्रेमचंद, सबको। साथियों तुम मार्क्स, ग्राम्सी से लेकर टॉलस्टॉय को पढ़ना। गीतांजलि की कविताओं से लेकर टी.एस.इलियट की कविताओं में फ़ैज़ के नज़्मों में साहिर की ग़ज़लों में पाश के बोलों में अमृता के प्रेम में इमरोज़ के समर्पण में मंटो के अफसानों में इस्मत चुगताई के आजाद ख्यालों में गंगा के उसपार रेत पर जाकर लेट जाना और खो जाना..डूब जाना..
तुम ये जानने की कोशिश करना कि आखिर क्यों राजनीति जब असफल होती है तो वो धर्म को अपना औजार बनाती है? तुम ये सोचना कि आखिर क्यों दुनिया की इतनी सारी शाक्तिशाली संगठन होते हुए भी दो देशों के बीच युद्ध अनिवार्य बनते जा रहा है?
तुम नई चीज़ों को सीखने से कभी मत घबराना। सब कुछ करना। हो सकता है कि तुम असफल होगे हो सकता है तुम टूटोगे लेकिन मजबूत व्ही होता है जो टूटकर फिर से उठना सीख जाए जो जीना सीख जाए। इसलिए नई चीजों को अपनाते रहो।
इन तीन वर्षों में तुम्हें कई लोग ऐसे मिलेंगे जो तुम्हें खीचेंगे अपनी विचारों की तरफ अपने संगठन की तरफ अपने फ़िज़ूल के कामों की तरफ..लेकिन कोई भी काम करने से पहले तर्क और कारण को तरजीह देना। याद रखना दोस्तों कि किस्मत जैसे शब्द केवल और केवल उनके लिए होता है जो लड़ना नहीं जानते हैं। आपको कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना है क्योंकि एडजस्टमेंट हमें हमारे सर्वोत्तम को पाने से रोक देता है। हर उन बंधनों को तोड़ देना जो आपके वजूद को बदलने की कोशिश करे। प्रेम भी उसी से करना जो आपकी मिट्टी को जो आपके सच को जो आपको स्वीकार करे। वो कैफ़ी आज़मी कहते हैं न ," जब मोहब्बत कैद बन जाए तो मोहब्बत से निकल।"
साथियों,
नेहरू ने एक बार कहा था कि यूनिवर्सिटी इज़ अ प्लेस फ़ॉर यूनिवर्स ऑफ़ आइडियाज। बस इन तीन वर्षों में ख़ुद को इतना परिपक्व बनाओ कि तुम व्ही स्नातक बनकर निकलो जैसा मनु ने सूर्य को कहा था कि जिस दिन हमारे स्नातकों का दीक्षांत होगा उस दिन तुम अपने उदय का समय बदल देना क्योंकि हमारे स्नातकों के विचारों की तेज़ में तुम्हारी रोशनी फीकी पड़ जाएगी।
साथियों,
अपने विचार बनाओ। इस दुनिया को देखने का अपना नज़रिया बनाओ। इस दुनिया को जीने का अपना तरीका खोजो। उधार के विचार भूल भी सकते हो। बस यही कहूँगा कि ये तीन वर्ष तुम्हारे ज़िन्दगी के सबसे स्वतंत्र वर्ष हैं इसे ख़ुद की तरक्की के लिए बनाओ और फिर अपनी तरक्की से राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना। और जब भी घबराओ तो बस साहित्य की गोद में जाना तुम्हें असीम ऊर्जा मिलेगी जिंदगी को जीने का।
पड़ोसी मुल्क के एक शायर कहते हैं,
नए दीवानों को देखें तो खुशी होती है
हम भी ऐसे ही थे जब आये थे वीराने में
अगली मुलाक़ात तक के लिए अलविदा।
खूब पढ़ो खूब लड़ो।
खूब घूमो।
खूब तर्क वितर्क करो।
सवाल करने की आदत को ज़िंदा रखो।
✍️ नीतीश
【 यह भाषण 9/09/2019 को आचार्य नरेंद्र देव छात्रावास के नवागंतुक समारोह में मेरे द्वारा प्रतिनिधि भाषण के तौर पर नवागंतुकों को संबोधित करके दिया गया था】
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