बनारस

5/10/20 

ओ मेरे बनारस! 
कितना दुख था तुमसे दूर रहना। तुम अपने अंदर इतनी मोहब्बत कैसे लाते हो? तुम सबको अपना बना लेते हो। अक्टूबर का पाँचवा तारीख और समय छः बज के तेईस मिनट। मैं पटना जंक्शन पर तुम्हारी ओर ले जाने वाली ट्रेन का इंतज़ार कर रहा हूँ। तुमसे दूर रहते हुए कितना मिस किया मैंने तुम्हें। मैंने लॉकडाउन के दरमियान जो कुछ भी लिखा उसमें तुम्हारा जिक्र था ही। फ़ैज़ की नज़्म बज रही है। 'बॉम्बे में का बा' लिखने वाले सागर का कहना है कि सोचिए यह देश तब कैसा होता जब यहाँ का हर बच्चा बचपन से ही शैलेंद्र और साहिर की नज़्में गाता। यदि वो अपनी कविता में साहिर की परछाइयाँ पढ़ता और अपने चौक पर जोर-जोर से कहता कि, फौजों के बैंडों के तले चरखों की सदायें डूब गयी। मैं इन सबको कैसे जानता यदि तुम्हारे पास न आता? ये फ़ैज़, साहिर, शैलेंद्र, से मुलाक़ात कैसे हो पाती? मुझे आखिर मोहब्बत किससे हुआ? शहर बनारस से, तुम्हारे घाटों से, उससे, तुम्हारी गलियों से, तुम्हारे अल्हड़पन से...आखिर किससे या फिर जो कुछ तुमने मुझे दिया उससे? तुम्हें पता है कभी कभी न हम अपना ग्रेटिट्यूड प्रकट करते करते किसी के प्रेम में पड़ जाते हैं। राजनीति विज्ञान पढ़ते वक्त किसी ने कहा था कि इस दुनिया में कुछ भी फैक्ट नहीं है बल्कि सबकुछ इंटरप्रेटेशन है। तुमसे मेरी मोहब्बत भी एक इंटरप्रेटेशन है। शैलेन्द्र कितना खूबसूरत लिखते थे। दक्षिण में एक बहुत बड़े समाज सुधारक हुए। पेरियार नाम था उनका। वो जब तुम्हारे यहाँ आया था न तो यहाँ की मंदिर व्यवस्था को देखकर खिन्न हो गया और फिर अपने यहाँ रूढ़िवादियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। दक्षिण में कास्ट बैरियर जो कुछ भी टूटा है न उसमें पेरियार एक बहुत बड़े कारण हैं। सोचो हिन्दू धर्म की मुखालफत करने वाला सबसे बड़ा फिगर का कारण तुम ही हो। जब यूरोप में रेनेसां शुरू हुआ तो उसके पिता मार्टिन लूथर भी इटली की चर्च व्यवस्था को देखकर खिन्न हो गए। उसने मोर्चा खोल दिया और तुरंत एक पेज में कैथोलिक चर्च के खिलाफ लिखकर शहर की सबसे बड़ी चर्च पर चस्पा कर दिया। 

तुम इसलिए इतना खूबसूरत हो क्योंकि तुम्हारे पास सब है। भारत में वही खूबसूरत होने का दावा कर सकता है जिसके पास सब का संगम है। जो शहर किसी एक का नहीं है। तुम्हारी खूबसूरती उसी दिन खत्म हो जाएगी जिस दिन केवल मंदिर से घंटे की आवाज आएगी। मैं जब दशाश्वमेध से निकलता था तो उसी पंक्ति में मंदिर है, बगल में मस्जिद, फिर चर्च और फिर गुरुद्वारा। मैं बिल्कुल भी धार्मिक नहीं हूँ और ना ही मुझे ईश्वर पर विश्वाश है लेकिन अबतक किसी का अवमानना नहीं किया हूँ। शायद कभी करना शुरू कर दूँ लेकिन अभी तक तो नहीं। 

मैं लगभग छः महीने बाद तुम्हारे पास लौट रहा हूँ। इन तीन सालों में तुमसे दूर रहने का यह सबसे लंबा अंतराल है। इस बार तुमसे जाने के बाद, हो सकता है सबसे बड़ा अंतराल होगा। कहते हैं कि अक्सर लोग पहले प्रेम को भूलने के लिए दूसरा प्रेम कर लेते हैं। मुझे तुम्हारे अलावे किसी से मोहब्बत हो पायेगा? और यदि न हो पाएगा तो क्या होगा? मेरा एक दोस्त कहता है कि बनारस मोक्ष का शहर नहीं बल्कि यह एक मायावी शहर है। एक बात साफ है तुमसे मोहब्बत की अनुभूति तब ही हो पाती है जब तुमसे दूर जाता हूँ। तुम्हारे पास आते ही चिड़चिड़ापन आने लगता है। तुम भी सोचते होगे कि मैं तुम्हारा कैसा प्रेमी हूँ। मैं अपनी पूरी जिंदगी गंगा के घाटों पर बिता सकता हूँ। बिस्मिल्लाह की शहनाई की आवाज आती रहे और कहीं दूर से कबीर के दोहे टूट-फूट के कान को छू कर निकल जाए। मैं अस्सी पर होने वाले सुबह-ए-बनारस के नजदीक नहीं बैठूँगा, उससे थोड़ा दूर, जहाँ से उसकी धुन आती रहे और मैं उगने वाले सूरज को भी निहारता रहूँ और किसी मल्लाह को अपनी नाव को किनारे से आगे धकेलते हुए। मेरी आँसू की कितनी ही बूंदो को तुमने समा लिया था अपने अंदर। जब मैं बेचैन होता था तो गंगा का पार ऐसे अपनी ओर खींचता था जैसे बचपन में माँ की गोद या फिर जैसे प्रेमिका की गोद। 

.  ( Amphitheatre Ground, In my third year of BHU, I used to come here on every Sunday)

हम जिंदगी में माँ के ग्रेटिटूड को बहुत प्रकट करते हैं लेकिन उस लड़की का क्या जिसका पहली बार आप हाथ पकड़के सड़क पर चले। उस लड़की का क्या जिसने आपको अपनी गोद में सर रखकर सोने दिया। उस लड़की का क्या जिसने पहली बार आपको गले लगाया। हमें एक स्त्री के रूप में माँ का जो प्यार मिलता है, हम बड़े होने पर भी वही खोजते हैं। 
मुझे ऐसा लगता है कि बनारस ने मुझे वो भी दिया। तुम ऐसी ही थी यार। प्रेम दोस्ती की संभावनाओं का नाश कर देता है। हर्ष भैया कहते हैं न, "उस वक़्त हम प्रेमी नहीं थे। प्रेम हमारे लिए एक अवश्यंभावी प्रक्रिया थी जिसका अंत अच्छा नहीं होता।" हम कभी प्रेमी नहीं थे। प्रेम अनेक संभावनाओं का नाश कर देता है। मैं तुम्हारे लिए कुछ और था और तुम मेरे लिए कुछ और। बनारस में जब पहली बार तुमसे मिला, तो उस दिन कुछ नहीं हुआ था। खैर....

09/10/2020

बनारस! तुम इतने क्रूर हो। मैं तुमसे दूर रहकर कितना मिस करता हूँ तुम्हें। तुम इतने निर्दयी निकले कि आने के दो दिन बाद ही मुझे फिर से तुमसे चिढ़ होने लगी। नालायक हो तुम। तुमने मुझे आज फिर से रूला दिया। बहुत दिनों बाद। शायद महीने भर बाद। मुझे अब यहाँ से जाने का मन कर रहा है। कहीं दूर। बहुत दूर। आज तुमने मुझे फिर से रुलाया है।


14/10/2020

अभी एएनडी में बैठा हूँ। जहाँ तीन साल रहा। कितना सुकून है यहाँ। अभी कमरे में बैठा था तो माली अंकल आ कर पूछते हैं कि खाना खाये? नहीं अभी नहीं। बोले, चलो मुर्गा बना है खा लो। नहीं खाते हैं मुर्गा। घर से करेला की सब्जी बनकर आया है, वही खा लो। नहीं बाबा, जूनियर लेकर आ रहा है खाना। एएनडी! कितना अच्छा होता न तुम एक रात अपने यहाँ ठहरने देते। मैं चाहता हूँ कि समय को फिर से पीछे करके 21 मार्च लेकर जाऊं और जब वार्डन आकर रूम खाली करने कहे, तो मैं बिल्कुल मना कर दूँ और फिर से कांट को निकाल कर पढ़ना शुरू दूँ। पीछे से कुकर से सीटी की आवाज आये। मुझे जितना पढ़ना पसंद है, उतना ही फिल्में देखना, उतना ही घूमना और उतना ही खाना बनाना। मैं चाहता था कि कम से कम एकबार सब मेरे कमरे में आकर खाना खायें। बहुत लोग छूट गए। तीसरे साल में रविवार बहुत सुंदर रहता था। जबतक मेरा पड़ोसी सो कर उठे, तबतक मेरा खाना बनकर  तैयार रहता था। खाना बनाना बहुत डिसिप्लिन का काम है। आप एक मसाला ज्यादा देंगे तो सब टेस्ट बिगड़ जाएगा। समय बहुत अरेंज रहता है इससे। खाना बनाते वक्त हमें खुद से बात करने का समय मिल पाता है। मसाले को पकाते वक़्त, नमक डालते वक़्त, पानी गिराते वक़्त, इन सब समय हम खुद से बात करते हैं। मुझे काम करने में तेज़ी बहुत पसंद था। मैं चाहता था मेरा खाना डेढ़ घंटे में बनकर तैयार हो जाये और मैं दो घंटे के भीतर खा लूँ। हमेशा ऐसा होता था। जब एएनडी पहली बार आया तो घर से थाली तक लेकर नहीं आया था। होस्टल से बहुत माफी, तुम्हारे यहाँ इल्लीगल खाना बनाने के लिए। तुम्हारे बिजली का शायद दुरूपयोग करने के लिए। माफी मांगना तब बहुत बेकार हो जाता है, जब मौका मिलने पर हम फिर से वो गलती कर दें। मैं कमरे में देख रहा हूँ, हीटर है, कढ़ाई है, कुकर है और जी कर रहा है फिर से खाना बना लूँ। तो ऐसी माफी मांगने का क्या ही फायदा? फिर भी माफ कर देना। 

कितने दिन रहा मैं बनारस में। कभी अच्छा नहीं लगा और कभी बहुत सुकून।

.   ( View of AND Hostel, From my Room)

15:12

कितना बदल जाऊँगा मैं, जब यहाँ पर दस साल बाद लौटूँगा। अभी छः महीने पहले तक मुझे वेब सीरीज देखना पसंद नहीं था, फिल्में भी नहीं। अभी मैं बंगाली गाना सुन रहा हूँ। आमारो प्राणो जाय छो। फिल्में देखना शौक हो गया है। मैं जब लौटूँगा यहाँ पर तो यहाँ के फर्स्ट ईयर के बच्चे में खुद को देखूंगा। बिल्कुल अपरिपक्व। 

15/10/2020

अब जा रहा हूँ बनारस। होस्टल से तो अलविदा हो गया है। सब काम करते करते भी ऐसा लग रहा है कि कम से कम एकबार फिर तुम्हारे पास आना ही पड़ेगा। अभी मुग़लसराय हूँ। ट्रेन का इंतज़ार कर रहा हूँ। पिछली बार कुछ अधूरा छूट गया था लेकिन इसबार सब पूरा करके लौटा हूँ। सुकून है भीतर। कोई हलचल नहीं है। बेहद तेज़ हवा आ रही है। स्टेशन पर कोरोना से बचने का उपाय बार-बार बताया जा रहा है। बनारस बिल्कुल नार्मल हो चुका है। 
  ( Batch 2017-20, Resident of AND Hostel)

19:26 पटना में।

बनारस ने कितना कुछ दिया है, वो आज बेहद पक्का हो गया। मुझे कभी यह विश्वाश नहीं रहा कि मैं कभी दोस्त बना भी पाऊँगा। मैं खुद से हमेशा हर रिश्ते के प्रति ईमानदार रहा लेकिन स्कूल और बारहवीं तक कोई ऐसा न मिला जिसे दोस्त कह सकूँ। बेस्ट फ्रेंड होते हैं सबके। मेरा कोई नहीं था। मैं क्लासमेट, बैचमेट तक रहता था। भीतर से किसी के लिये दोस्त नहीं निकला।

.  ( View of Ganga Ghat, From other Side)

बनारस ने मेरी जिंदगी की यह कमी भी पूरा कर दिया। बहुत अच्छे दोस्त बने। अब मेरे पास दोस्त भी हैं। अब मैं जहाँ भी रहूँ, हमेशा सबकी मदद करूँगा। मेरा कमरा सबके लिए खुला रहेगा। बनारस तुम बहुत अच्छे हो। मैं तुम्हें अब याद नहीं करूँगा। याद तो उसको करते हैं न, जो छूट जाता है, तुम मेरे साथ हो। मेरे जीवन में, मेरे हिस्से में, मेरी सफलता में, मेरी असफलता में, मेरे विचारों में। मेरा जो कुछ भी है, उसमें एक हिस्सा तुम्हारा भी है। मैं अपने साथ बनारस लेकर आया हूँ। बनारस का सबकुछ है मेरे अंदर। सबकुछ। घाट, मंदिर, मस्जिद, पान, लस्सी, संघर्ष, दोस्त, गंगा, ज्ञान, राजनीति, अस्सी, एम्फीथिएटर, दशाश्वमेध, गंगा का रेत, सारनाथ, कबीर, बिस्मिल्लाह सबकुछ। 

सबकुछ को बयाँ करना मुश्किल है बनारस। जब फिर मिलेंगे न तो तुम मेरी आँखों में अपने प्रति सम्मान देख लेना। मेरे अनुसार सम्मान देने का और देखने का सबसे अच्छा तरीका यही है। आंखें कभी झूठ नहीं बोलती हैं।

अगली बार आँख से आँख देखकर बात करने तक के लिए अलविदा।

नीतीश।


Comments

  1. बनारस का प्रेम और AND की शाम की बात इससे बेहतर कुछ भी नहीं!अपने शब्दों को बयाँ करना कितना मुश्किल हैं..love you bro❤️

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  2. जिंदगी का सफर यूं चलता रहे सपने साकार होते रहें
    मिलते हैं ,बिछड़ते हैं और अंततः यादों का सफर साथ रह जाता है
    🙋

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