वॉकिंग विद सॉरो: दिल्ली 'वन'

शाम के छह बजकर 15 मिनट। जामा मस्जिद में एक टीले के सहारे खड़ा हूँ। नमाज का वक़्त है यह। जैसे ही नमाज के शब्द कान में पड़े, जैसे लगा कि हमारा संबंध किसी और ही दुनिया से स्थापित हो चुका है। हम इंसान के रूप में बहुत ही सीमित हैं। मुझे हमेशा लगा है कि प्रेम दुनिया का सबसे ओवर ग्लोरीफाई किया हुआ कांसेप्ट है। प्रेम और अट्रैक्शन के बीच बहुत फाइन लाइन होती है। हम अधिकतर समय अट्रैक्शन को प्रेम मान बैठते हैं। मैंने सवाल के बदले इसबार मौन चुना।

मैं जिस टीले के सहारे खड़ा हूँ उसपे पृथ्वी का ग्लोब बना हुआ है। उर्दू में कुछ लिखा है। हम जब दुख से भागते हैं तो चारों तरफ दुख से ही सफर करते लोग दिखते हैं। मैं वाकिंग विद सॉरो को चुनता हूँ। मैं इस सीरीज का नाम ही रखूँगा, वाकिंग विद सॉरो। स्पीकर से टूट-टूट के आवाज आ रही है। मन करता है कि ऊपर की मीनार पर चढ़ कर बैठ जाऊं और किसी मुस्लिम लड़की से बात करूँ। मैं अपने तेईस वर्ष के उम्र में किसी भी मुस्लिम लड़की से इंटरैक्ट नहीं कर पाया हूँ। बातें करना कितना सुखद होता है न। जिसमें सब ह्यूमेनिस्टिक हो। निर्मल वर्मा कहते थे कि विदाई के सारे निर्णय अंतिम होने चाहिए, वापसी के सारे पूल खत्म कर देना चाहिए। 

अब नमाज की आवाज नहीं आ रही है। मैं टीले से निकलकर एक दीवाल के सहारे बैठ जाता हूँ। मैं भैया से बातें कर रहा हूँ कि मैं बिल्कुल भी धार्मिक नहीं हूँ लेकिन दुख के घिराव में मुझे सबसे सुकून धार्मिक जगहें ही देती हैं। एक हिन्दू होने के नाते जब हमें एक ऐसे पूजा स्थल पे आने को मिलता है जो हमारे धर्म से संबंध न रखता हो, तो उसके सीढ़ियों पर चढ़ते वक़्त लगता है कि किसी ने छोड़ा है तो कोई बहुत बड़ा हमें अपना रहा है। बनारस में अक्सर विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में मैं बिस्मिल्लाह की शहनाई घंटों सुनता था। मैं इयरफोन नहीं लाया हूँ नहीं तो मैं यहाँ भी बिस्मिल्लाह को खूब सुनता और तब शायद दुख और कम हो जाता। 
अब रूम पे वापस आ गया हूँ। भैया ने बेहद सुंदर निम्बू पानी बना के पिलाया। आज जब मैं इतना परेशान था तो एक जूनियर ने मुझे मैसेज किया कि भैया आपको दिल्ली में मन नहीं लग रहा है, आपको यदि कभी अच्छा न लगे तो अक्षरधाम चल जाया कीजिये। मैंने कहा वो थोड़ा बुरसुआ प्लेस है, मैं जामा मस्जिद को चुनता हूँ। वो यह भी बोली कि आप फिक्र न करें, यू विल रॉक। बिखराव के पल में किसी का इतना सब बोलना भी बहुत ही हिम्मत देता है।

मेरा स्टेप ट्रैकर बता रहा है कि आज मैं ग्यारह किलोमीटर पैदल चला हूँ। थकान से शायद नींद अच्छी आ जाये। नींद पिछले कुछ दिनों से कहीं गायब थी। बिल्कुल भी मेरे पास में नहीं थी। 

मैं एक पैराग्राफ नीचे करके कुछ सोचने लगता हूँ। मुझे मानव कौल की याद आ रही है और फिर उसकी किताब; बहुत दूर कितना दूर होता है। लॉकडाउन में तीन महीने बिल्कुल भी किताब न छूने के बाद यही पहली किताब थी जिसे मैंने पढ़ा था। अमेज़न ने मेरे घर पे इसे डिलीवर किया। बेहद ही सूदिंग लिखते हैं मानव। इस किताब को पढ़ने के बाद मुझे फिर से पढ़ाई में मन लग गया और फिर उसके बाद का समय बहुत ही अच्छा गया। एक गहरी शांति व सुकून था उस जुलाई के बाद के समय में।

मैं फिर से मानव की नई किताब 'अंतिमा' आर्डर किया हूँ और वो कल डिलीवर होगी। मैं अपने रूम पर नहीं हूँ। कल जब मानव की किताब आएगी तो मैं उस किताब को मिस करूँगा। 

Comments

  1. जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गए.

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  2. किसी भी नए सफ़र की शुरूआत आसान नहीं होती। वॉकिंग विद सॉरो के साथ उम्मीद लेकर आगे बढ़ो।

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