समय का जिक्र करके लिखने की आदत किससे सीखी है मैंने? और क्या ही आवश्यकता है समय का जिक्र करना? कभी यह लिखना कि अभी शाम के छः बजे हैं और मैं टहलने के लिए लाइब्रेरी से बाहर निकल आया हूँ। आज कश्मीर के एक दोस्त से मिला। जब आखिरी बार शिकारा देखा था तो सोचा था कि जब भी किसी कश्मीरी से मिलूंगा तो केवल उसे सुनूँगा, चुपचाप।
अभी रात के तीन बजने वाले हैं और मैं अपने छाती के बल पर लेटा हूँ। तकिए को मोड़कर, अपनी ठुड्डी उसपर टिका दिया हूँ और दोनों हाथों की इंडेक्स फिंगर से कीबोर्ड पर उँगली घुमा रहा हूँ। क्योंकि आप हमें बहुत ध्यान से पढ़ रहे हैं इसीलिए आपको बताना जरूरी है, इस पंक्ति के बदले मैं कुछ और लिख रहा था लेकिन उसे फिर मिटा दिया। लेखक की दुनिया मे जितना छप के बाहर आता है उतना ही मिटाई हुई पंक्तियों में कहीं गुम हो जाता है। मेरी एक दोस्त कहती है कि सोचो यदि हमारे पास साहित्य, संगीत, कला नहीं होता तो हमारी दुनिया कैसी होती? सच में? बेजान, बेबस और केवल मैकेनिकल होता सबकुछ। लेकिन इस पृथ्वी के कितने लोगों को फुरसत है कि वो इस बात का ख्याल रखे कि इस वर्ष कौन से राइटर की कौन सी बुक को नोबेल मिला? या हम जब बेबस हों तो दिनकर को पढ़ें या जब हिम्मत चाहिए तो बोर्खेज की 'एन्ड यू लर्न' बुदबुदाते हुए पार्क में टहल लें?
अक्सर मेरे साथ होता है कि कभी कभी लिखने को कुछ नहीं होता है। जैसे अभी नहीं है। मैं पैराग्राफ बदल कर कुछ भी नया लिखने लगता हूँ। बेहद ज़रूरी है लिखना। नैसर्गिक लिखना या ऊटपटांग लिखना या अनाप-शनाप लिखना। थोड़ा वक्त है यह जब हम खुद से बात करते हैं जब हम खुद को झांकते हैं। कितना व्यस्त होता है हमारा दिन। आजकल दस घंटे से कम लैपटॉप की स्क्रीन पर नहीं देखता हूँ। माथे के एक हिस्से की नस पूरे दिन दुखते रहती है। रूक करके थोड़ा सा सहलाता हूँ तो थोड़ा आराम मिलता है। लेकिन कब तक...
मैंने अपनी एक दोस्त को पिछले दो साल से कुछ लिखने को कह रहा हूँ। उम्मीद है कि अब कुछ लिखना शुरू कर दे। वो जब भी लिखना शुरू करेगी तो उसका पहला लिखा आप सबसे ज़रूर शेयर करूँगा।
कोरोना फिर से हावी हो चुका है। एक बार फिर से घर में बंद होने का डर है। पता नहीं यह सब कब ठीक होगा। आज एक दोस्त ने कॉल करके कहा कि अब जेएनयू छोड़ रहा हूँ। यह ऑनलाइन मोड अब सहनीय नहीं है। दुःख होता है। आजकल दुःख ही है जो हमेशा साथ रहता है।
18/04/2021
Comments
Post a Comment