दिल्ली डायरीज: डिअर दोस्त 'नाइन्थ'

डिअर दोस्त,
सुबह के तीन बजकर आठ मिनट हो चुके हैं और नींद बिल्कुल भी नहीं आ रही है। पिछले कुछ दिनों से तीन फिल्में रोज देख रहा हूँ। आज भी धोबी घाट, umrica और  तीसरी फिल्म कौन सी देखा मैं भूल गया। मैं कितनी जल्दी भूल जाता हूँ; क्या ही बताऊँ! मुझे याद है बचपन में एक बार मामा ने बोला कि एक शायरी है इसे याद कर लो तो तीन रुपये वाली बिस्कुट खिलाऊँगा। उस वक़्त बिस्कुट ही था, बिस्किट तो बहुत बाद बोलना शुरू किया। उन्होंने मुझे एक दिन का टाइम दिया था। मैंने कुछ ही घंटों में सुना दिया। वो शायरी क्या थी वो अब याद नहीं है। बिस्कुट या कोई भी दुकान की चीज़ों से मुझे कोई लगाव नहीं था फिर भी मैं उसे इसीलिए तुरंत याद करके सुना दिया क्योंकि मुझे सुनाने के बाद मामा कितना खुश होते हैं या वो क्या बोलते हैं, वो देखना था। सॉर्ट ऑफ रिकॉग्निशन। मैं अब भी अपनी स्कूल की होमवर्क डायरी यदि निकालूँगा न तो ऐसा कोई दिन न होगा जिस दिन 'टू मेमोराइज़' न लिखा हो। कितना सिखाया जाता है हमें की मेमोराइज़ करो। शायद कभी भी एनालाइज करने को नहीं मिला था। एनालाइज शब्द पहली बार बैचलर में सुना और वो भी एग्जाम के पेपर में। क्लास में तो मेमोराइज़ ही था। 

               ( लव एंड शुक्ला फिल्म से )

अभी सोने की कोशिश कर रहा था तो तुम्हें लिख कर भेजा कि तुम लिखती क्यों नहीं हो। आज मैं सोच रहा था कि काम करना कितना अच्छा लगता है न तो मुझे दोस्तोवस्की की लाइन याद आ गयी। नोट्स फ्रॉम दी अंडरग्राउंड में उन्होंने लिखा है कि "Writing will be a sort of work. They say work makes man(human) kind hearted and honest." मैं बहुत कनेक्टेड फील किया इस लाइन से। जब बाहरवीं का पेपर खत्म हुआ था तो उसके बाद पापा की तबियत खराब हो गयी थी तो मकई की फसल में मुझे पटवन करवाना था। उससे पहले मैं खेत जाता था लेकिन किसी काम की फूल रिस्पांसिबिलिटी मेरे ऊपर नहीं थी। मैं लगभग सात से आठ दिन रोज सुबह 5 बजे उठता था और फिर रात को 7 से 8 घर वापस लौटता था। उस वक़्त हमारे पास मोटरसायकिल नहीं थी। घर से खेत तीन किलोमीटर दूर था और मैं साईकल से जाता था। पटवन की मशीन को रात में खेत से निकालकर दूसरी जगह रखना पड़ता था और खेत से कुछ दूर तक याने पक्की सड़क तक बालू का रास्ता था। मैं और दो लोग जो मेरे साथ थे, उस मशीन को खींच कर, धकेलकर पक्की सड़क तक पहुंचाते थे। पूरे दिन का सबसे मेहनत भरा काम यही था। मैंने अपनी जिंदगी में इतनी मेहनत कभी नहीं की थी। उन सात दिनों में एक दिन मैं पापा के सामने रो दिया कि हम अब नहीं करेंगे। जाने दीजिए। सूखने दीजिए मकई को। बस उतनी मेहनत मैं फिर अब तक कभी नहीं किया। पापा करते आ रहे हैं। मकई की एक उपज में पाँच से छः बार पटवन लगता है। कटाई, फिर तैयारी, बीज रोपना, सुखाना, पैकेज करना, ये सब अलग से। इसके बाद मुश्किल से 3 से 4 लाख रुपये मिल पाते हैं और उसमें से भी 1.5 से दो लाख नॉन-कैपिटल इन्वेस्टमेंट है मतलब जो कैपिटल इन्वेस्टमेंट नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि मेरे पापा अपने जमीन के बंधुआ मजदूर हैं। ये मेरे पापा हैं जिनके पास तो इतनी जमीन है। मेरे गाँव में मेरे पापा जैसे बेहद कम किसान हैं। अधिकतर तो एक या दो या फिर लैंडलेस लैबोरेर हैं। 

तुम लिखोगी न अब? मुझे यदि बोलने को मिले तो मैं कहूँगा  कि 'काम करो'। लेकिन जब तक वो नहीं होता है तो लिखो। दोस्तोवस्की ने कहा है न राइटिंग इज अ वर्किंग। मुझे ऐसा लगता है कि सभी काम का एक कंप्लीमेंट्री काम होता है। जैसे यदि पढ़ो तो पढ़ाओ भी। गाओ तो नाचो भी। खाओ तो खाना बनाओ भी। लिखो तो दूसरे को लिखने के लिए प्रोत्साहित भी करो। बिना कॉम्पलिमेंट के हर काम अपने आप में अधूरा है। हाँ, एक काम के कई कॉम्पलिमेंट हो सकते हैं और हम उसे अपनी सुविधानुसार या असुविधानुसार चुन सकते हैं। 

                 ( फिल्म धोबी घाट से )

मैं तुम्हें तब तक लिखता रहूँगा जब तक तुम लिखना शुरू न कर दो। हमारे पास व्यवस्थित लिखने वाले बहुत लेखक हैं जो छोटी और आसान बातों को भी भारी भरकम बना देते हैं। तुम 'अनाप-शनाप', 'बेतरतीब', 'कुछ भी', 'अजीब' और 'बिना मिटाए' लिखो वैसे ही जैसे प्रदीपिका कहती हैं। 

08/05/2021

Comments

  1. खूबसूरत सर। 💙

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  2. This is soukoon❤ reading your thoughts literally refreshes my soul.

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