घर के बरामदे पर बैठा हूँ। मेरे घर के छत पर टीन है। बारिश हो रही है। ज्यादा नहीं। धीरे-धीरे। मैं मोबाइल निकालकर नोट्स खोल लिया है। छाती के बल लेटकर, तकिया को मोड़कर ठुड्डी से टिका दिया हूँ और आँगन की तड़फ मुँह करके लिख रहा हूँ, कई दिनों बाद। आज दिल्ली से आये हुए आठ दिन हो चुके हैं। एक दिन भी ऐसा नहीं है जब बारिश न हुई हो। हर रोज। टीन का छत में जब बारिश की बूंदें पड़ती है तो संगीत बजता है। दीदी चाय लाती है। मैं लैपटॉप पर फूको का 'हिस्ट्री ऑफ सेक्सुअलिटी' को बंद करके चाय की चुस्कियाँ लेने लगता हूँ। समय सात बजकर अड़तीस मिनट हो रहा है। अब वापस जाने का समय आ रहा है। गाँव को अब मैं कितना अलग देखता हूँ। कम्युनिटी स्ट्रक्चर्ड अब फ्रैक्चर हो रहा है। पहले के लोग पैसे के पीछे नहीं भागते थे। अब पैसा सबकुछ है। यदि वो नहीं तो आप कमजोर हैं। लोगों के पास समय नहीं है। वो खाली समय बैठकर नहीं बिताते। चीजों का एक्सचेंज नहीं हो रहा है। मम्मी आवाज देके बोलती है कि राजा, सुनली ठाकुरबाड़ी में की गावे छे? भोले बाबा कोरोना को हार दो।
हमारे तरफ की सड़कें टूट गयी है। सड़क के आसपास पटुआ की गंध आती है। मुझे यह गन्ध बहुत पसंद है। मैं बचपन में जब अपनी दादी के घर जाता था तो सूर्यमुखी के फूल की गंध से जानता था कि अब घर पहुँच गया हूँ। पटसन की खेती में कितनी मेहनत है? हमारे जेएनयू के दोस्त जो ब्रह्मपुत्रा में रहते हों और जिन्हें सिग्गरेट खरीदने के लिए पैदल नार्थ गेट पर आना पड़े, उससे दस गुना ज्यादा मेहनत। खेती इंसान को शुद्ध कर देता है। उस मिट्टी, पानी, पटसन, धान हमारे अंदर की सारी अशुद्धता और कृत्रिमता को खत्म कर हमें प्योर बना देता है। मैं पहली बार जब धान की खेत मे गया तो कीचड़ में चप्पल लेके चला गया। मेरा चप्पल फँस गया, पापा डांटते रहे और सब मजदुर हँस रहे थे कि बजारू बाबू लेकिन मुझे बेहद मजा आया जब उस कीचड़ में मेरा पैर फँसा।
कितना उधार है यहाँ के सबकुछ का हमपर। मैं कितना कट चुका हूँ सबकुछ से। आने के पाँच दिन लैपटॉप पर पेपर लिखता रहा। उसके बाद अब तीन दिन में सबसे मिल नहीं पाया हूँ। जी करता है कुछ देर और रूक जाऊं। कितने सारे सपने मैंने यहाँ बैठकर देखा। इसी मिट्टी में। उस वक़्त घर भी फूस का हुआ करता था। घर से बुआ के पास जाने के बाद कई दिन तक रोता था। क्यों? रोना कितना नेचुरल है न! बड़े होने के बाद हम रोना को कमजोरी से जोड़ देते हैं।
घर जाना अच्छा होता है। ठाकुरबाड़ी से ढोलक और झाल की आवाज अब भी आ ही रही है। भांजी अब तक ए, बी, सी, डी पूरा नहीं लिख पायी। पापा, मम्मी को खाना बनाने को बोल रहे हैं, उन्हें भूख बहुत जल्दी लगती है। आज खाना मैं बनाऊंगा। सॉरी, केवल सब्जी।
28/08/2021.
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