दिल्ली डायरीज: सिक्सटीन्थ

आज थोड़ा पहले लिखने बैठा हूँ। इक्कीस बजकर उनचास मिनट हो चुका है। आज का दिन रविवार है। इक़बाल बानो को सुन रहा हूँ। दाग़-ए-दिल हमको याद आने लगे। यह पहली बार सुन रहा हूँ। लिखने के नाम से ही पूरे दिन भर की बैचेनी एकदम थम सी गयी। जैसे ही पहला अक्षर लिखा वैसे ही सब शांत हो गया और बाकी का काम इक़बाल बानो ने कर दिया है। एड ब्लॉक के पास नेहरू की मूर्ति लगी है। उसी के बगल में एक चौपाल है। वहीं पर बैठा हूँ। जेएनयू घूमने वाले जानते होंगे। अक्सर जब बाहर रहता था तो रात के नौ बजे रूम पर वापस लौटते वक्त कुछ लोग हमेशा यहाँ गिटार पर गाते थे लेकिन आज नहीं हैं। मैं कभी रूक कर नहीं सुनता था उन्हें। यहाँ दो लोग बैठे हैं और एक कुत्ता। लिखते वक्त तक यदि वो यहीं रहेगा तो आज के ब्लॉग में उसी की तस्वीर होगी। बाकी दोनों क्या बात कर रहे वो पता नहीं चल रहा है। या फिर मैं सुनना नहीं चाहता हूँ। इक़बाल की खूबसूरत आवाज में भी उन दोनों की आवाज आ रही है।

मच्छर से परेशान होकर आखिरकर आज ओडोमस खरीद ही लिया। आज पुराने कमरे पर भी कुछ देर के लिए वापस गया। दीवार पर अब भी बोर्खेज की पंक्ति लगी थी। एंड यू लर्न, विथ एव्री गुड बाई यु लर्न। बोर्खेज सही था। लर्न तो करते हैं। इक़बाल यह जो नज्म गा रही है वो और भी खूबसूरत है। ओ, मैंने दोबारा नाम पढ़ा तो वो पुरानी नज्म ही थी। अब एक और लोग आ कर बैठे हैं। उन्होंने हमारे से दुगुनी बसंत ज्यादा बिता लिया है। शायद थक के बैठे हैं। मास्क भी लगा रखा है। ओ, वो लेट चुके हैं। उनदोनो की आवाज थोड़ी तेज़ हो गयी थी। मैंने गाने का वॉल्यूम बढ़ा दिया। मोहब्बत करने वाले कम न होंगे। पब्लिक प्लेसेस पर कितना प्राइवेट स्पेस मिल सकता है? अपने दोस्तों का हाथ थामने को। उन्हें गले लगाने को। उनके गोद में सर रखने को। उनके कंधे पर सर रखने को। और फिर यह सब करते वक़्त उस पब्लिक प्लेस पर चलने वाले लोग हमें कैसे देखते हैं। 

आह, मोहब्बत करने वाले कम न होंगे, लेकिन तेरी महफ़िल में हम न होंगे। आँसू की एक बूँद छलक गयी और। कुत्ता जा चुका है यहाँ से। मैं उसी का इंतज़ार कर रहा था कि वो आये तो उसकी एक तस्वीर लूँ और फिर ब्लॉग पोस्ट कर दूँ। लेकिन जाने वाले को जाने देना चाहिए। 

08/08/21

Comments

  1. तुमको पढ़ना मेरे लिए भी किसी सुकून से कम नहीं है भाई ❤️❤️

    ReplyDelete

Post a Comment