सुबह के नौ बजकर चालीस मिनट हो रहा है। बिस्मिल्लाह मेरे तुम कितने आबाद हो? तुम कब कब मेरे पास आते हो? जब मैं खुश रहता हूँ? नहीं? जब मैं उदास रहता हूँ। जब एंग्जायटी घेरे रहती है। राग जयजयवन्ती लगा चुका हूँ। बनारस में जब भी किसी पुरानी गलियों से गुजरता तो लगता था कि सारी गलियों में तुम बज रहे हो। हर घर से ऐसा लगता था कि तुम्हारी ही आवाज आ रही है। ऐसा लगता था कि हर खिड़की में तुम्हारी शहनाई तंगी है। क्या ऐसा भी होता था बिस्मिल्लाह की जब तुम शहनाई बजाकर रख देते तो उसमें से फिर भी तरंगें आती थी? जैसा आजकल होता है न, कि फोन रख देने के बावजूद, ऐसा लगता है कि वो वाइब्रेट कर रहा है! कितना डिस्टर्बिंग होता है जब हम देखते हैं कि हमारा फोन नहीं बज रहा था। लेकिन तुम्हारी शहनाई की तरंगें तो मष्तिष्क में राग के तराने छोड़ते होंगे? आह!
तुम तो तब भी थे बिस्मिल्लाह जब मैं विश्वनाथ मंदिर में लेट कर तुम्हें सुनता था। तुम तब भी थे जब मैं गंगा पार जाकर तुम्हें सुनता था। और तुम आज भी हो। क्या कुछ भी बदलाव है मुझमें? मैं तुमसे आज भी उतना ही मोहब्बत करता हूँ, जितना पहले। शायद पिछले कुछ महीने तुम्हें नहीं सुना। लेकिन जेएनयू में तो एकांत जिंदगी ही है, फिर भी मैं तुम्हें कैसे भूल रहा था? और शायद ये तुम्ही होगे जिसने फिर से दुख को मेरे आसपास भेजा है ताकि मैं तुम्हें याद करूँ? बिस्मिल्लाह तुम बोल देते मैं तुम्हें याद कर लेता, दुख क्यों भेजे? अब नहीं होता है बर्दाश्त!
कितने ही लोगों को पता होगा कि भारत की आजादी की पहली सुबह शहनाई की धुन तुम बजा रहे थे, लाल किले से। इस कोविड में कला, संगीत, नाट्य कितना तबाह हो गया है? जब जेएनयू में नहीं था तो सोचा था कि दिल्ली आने पर जश्न-ए-रेख़्ता जाऊँगा। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल। एनएसडी का ड्रामा। दुख इसलिये भी तो जिंदगी में होता है क्योंकि हम बोरियत सी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं जैसा कि पाश कहता है? घर से निकलना काम पर और काम से घर लौटना। मूवमेंट हर चीज में आवश्यक है। ह्यूमन टच शायद एनिमल टच भी हील करने में सक्षम है। कल रात को मैंने कुत्ते को गले पर हाथ रखकर सहलाया, काफी अच्छा लग रहा था। बचपन में गाय के बछड़े को सहलाता था। वो कितना तेज से दौड़ता था।
अब लिखने के बाद अच्छा लग रहा है। काफी हल्का। बिस्मिल्लाह तुम आओ न फिर से। मैं तब ही बनारस लौटूँगा।
30/09/2021
दिल्ली।
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