जेएनयू का एक अध्याय खत्म हो चुका है। हाथ में मास्टर्स की एक डिग्री है। जाने से पहले जेएनयू को बेहद गज़ब का इमेजिन किया था। दो साल का मास्टर्स को एडमिनिस्ट्रेशन न डेढ़ साल में खत्म कर दिया। तीन सेमेस्टर ऑनलाइन और अंतिम वाला भी हाइब्रिड। वो कोई लर्निंग नहीं था। सबसे बड़ा क्रूर मजाक था वो। अब भी हो रहा है। अब होते ही रहेगा। पूरी की पूरी नई शिक्षा नीति ऑनलाइन और निजीकरण को प्रमोट करती है। घर वापस आ गया हूँ। लगभग बीस दिन हो गए हैं। जब जेएनयू से होस्टल खाली कर रहा था तो दिल्ली में बेहद गर्मी थी। सोचा घर पर बारिश होगी। उस वक़्त हो रही थी। मेरे बिहार आने के बाद आज पहली बार अच्छी बारिश हुई है। मैं खिड़की के पास बैठ के लिखने लगा हूँ।
फेसबुक और तमाम सोशल मीडिया एकाउंट्स को एक्टिवेट कर लिया हूँ। यह करीब डेढ़ साल बाद। जेएनयू में होनी की खुशी भी फेसबुक पर नहीं डाला था। उतनी हो भी नहीं रही थी। और न जेएनयू जाने के बाद कुछ महसूस हुआ। दरअसल जितनी इस सरकार ने एक जेएनयू भर को तबाह करने में हिम्मत लगाई है शायद ही वो उतना एफर्ट इन सात सालों में कहीं और लगाई हो। लेकिन इन सबसे बढ़कर जेएनयू अंदर से बदल रहा है। इनके फैकल्टी और स्टूडेंट्स में बड़ा बदलाव आ रहा है। मैंने वहाँ रहते हुए महसूस किया है कि जेएनयू अपने बिखराव के दौर से गुजर रहा है और अब सरकारें कोई भी आ जाए, इसका बिखरना कोई नहीं रोक सकता। पब्लिक इंस्टिट्यूशन की प्रोडक्टिविटी को जब तक खत्म करके न दिखाया जाए तब तक प्राइवेट की बुनियाद कैसे डालेगी सरकार?
घर आने के बाद यहाँ शुरुआती कुछ दिनों में रहना मुश्किल लग रहा था। नफरत और वैमनस्य का वातावरण चारों तरफ फैला है। पॉलिटिक्स के नाम पर बस मुस्लिम को टारगेट किया जाता है। मैं तो बस सोच रहा था कि कितने दिन यहाँ रह पाउँगा लेकिन सच यही है। रहना यही है। सच है कि जेएनयू एक आइलैंड है, "आइलैंड ऑफ होप।" उसकी दुनिया बाकी दुनिया से बेहद अलग है। इसीलिए बाकी दुनिया को वो पसंद नहीं आता है। और वो बाकी दुनिया को खुद के जैसे बनाने में लगा रहता है।
अब कब वापस जाऊँगा, नहीं पता। अभी घर पर रहना सही लग रहा है। तमाम नोंकझोंक के बावजूद बहस बेहद तीखी होती है। स्कूल के दोस्त अब भी वैसे ही हैं। उनसे बहस भी कैसे क्या जाय जो रिजर्वेशन के अगेंस्ट बोल रहे हैं। रोना आ जाता है। गुस्सा वाला रोना। यदि रोजगार और इकॉनमी पर बात छेड़ूँ तो लूलू-तुलू और नूपुर-चुपुर करने लगता है। इंजिनीरिंग, मेडिकल और मार्किट वाले को सोशल साइंस (जेएनयू वाला) पढ़ना बहुत इम्पोर्टेन्ट है। इन बीस दिनों में यही सब है। अब मिलते रहूँगा। यहाँ कुछ ज्यादा ही संघी-आतंकी-नफरती-भाजपाई एजेंट भर चुके है। हमारे क्षेत्र में भी, अब सबकी खबर ली जाएगी। कोई भी निगाह से छूटना नहीं चाहिए। जेएनयू ने रैडिकल बना दिया है।
संघियों की छाती पर
बिरसा-फुले-अम्बेडकर ।
23/07/2022
घर।
मै आपका अब तक का सारा पोस्ट पढ़ लिए बहुत अच्छे लिखते है आप
ReplyDeleteअचानक कहीं से मिल गया आपका blogpost सारा पढ़ चुका अब तक का आगे का भी खत्म कर देंगे दो चार दिन मे
और भी लिखते रहिए
आपका blogpost से मैंने अपने लिए एक song का Playlist बना लिया है अब यही सुनूंगा
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