मध्य प्रदेश: चैप्टर २

देवास और मंदसौर दोनों ही एक वाहियात शहर है। अभी छिंदवाड़ा आ गया हूं। मन ही मन यही चल रहा था इसीलिए पहली पंक्ति यही लिख डाली। रतलाम में जब पहली बार आया तो महिलाओं को घूंघट ओढ़े देखा। मंदसौर राजस्थान से सटा जिला है। राजस्थान के राजपूत घराने के रीति रिवाज का असर यहां की सामाजिक जीवन में साफ दिख रहा था। पब्लिक स्पेस में महिलाए गिन चुन कर ही दिख रही थी। लगता ही नहीं था की इस शहर की आधी आबादी स्त्री भी है। पब्लिक स्फीयर में स्त्री का इतना कम पार्टिसिपेसन से अजीब ही लग रहा था।


         (देवास के एक चौक पर बाबासाहेब की लगी मूर्ति)

देवास जिला का भी लगभग यही माहौल था। फ्यूडल लिंक की बदबू आ रही थी। हर चौक - चौराहे पे राजमाता लिखे बोर्ड और बगल में उसके मूंछ पर तांव देते बेटे का फोटो इस बात को साफ दिखा रहा था कि राजे - रजवाड़ों का प्रदेश अब भी उसी मानसिकता में जी रहा है। पॉलिटिक्स और इकोनॉमी का पूरा कंट्रोल का काम धर्म बखूबी निभा रहा है। दूर ऊंचे पहाड़ पे दो माता की मंदिर, बीस मिनट पैदल चढ़ने का रास्ता, उसके दोनों ओर दुकाने ओर साल में ढेर सारा आयोजन आसानी से पूरे शहर का राजनीतिक माहौल उनके पक्ष में खड़ा कर रहा था। हर चौक पे हिंदू सेना, करनी सेना, ओर भांति भांति के हिंदू धार्मिक सेनाओं के पोस्टर दीवाली, दुर्गापूजा के बधाई का संदेश दे रहे थे।

शायद ही हिंदुस्तान का ऐसा कोई भी पहाड़ की चोटी हो जहां हिंदू धर्म से जुड़ा उपासना स्थल न हो ! सभी के सभी उपासना स्थल का मार्केट से सीधा संबंध होता है। उनको आकर्षक उस स्थल से जुड़ी इतिहास में घुसी किसी रहस्यमय और भ्रामक कहानियों में होती है। उससे भी अधिक मजा दिलाना होता है तो कहते हैं कि इसका जिक्र फलाने पुराण में है। इन सारे स्थलो पे ब्राह्मण पंडितो का कब्जा होता है और बाजार बनिया लगाता है और उसका राजनीतिक फायदा राजपूत उठाते हैं। ओबीसी अपनी कमाई वहां लुटाते हैं और दलित शोषित होता है। शिक्षा दीक्षा से ध्यान हटकर रामा - रामा करने में लगे हैं। पैटर्न लगभग यही है, अपवाद कुछ हो सकते हैं।

(देवास जनपद पंचायत ऑफिस के खिड़की से नगर निगम देवास के ऑफिस बिल्डिंग की ली गई तस्वीर। जनपद पंचायत एक छोटे से  तंग पड़ी बिल्डिंग में चल रही थी)

देवास शहर बिल्कुल ही वाहियात लगा। रात को डिनर करके जब टहलने निकला तो कुछ मजदूर/ऑटो ड्राइवर लोग चिलम फूंकते आग सेंक रहे थे। मैं अभिनव के साथ वहां बैठ गया। वो सभी लोग बेहद वेलकमिंग थे। बस कुछ ही सेकंडो में मैं उन्हें वहां खींच लाया जहां उन्हें लाना चाहता था। वो सब मोदी सपोर्टर थे। मैं उन्हें बताया कि मैं बिहार से हूं। वो लालू के बारे में पूछने लगे। मैं उन्हें बताने लगा कि कैसे बिहार में जाति आधारित पार्टी होने का फायदा वहां की पिछड़ी जातियों को मिला। वो इसे जातिवाद समझते थे। मैंने उसे अपने सीधी जिला का अनुभव बताया कि कैसे वहां और मध्य प्रदेश में दलित - आदिवासी के खिलाफ क्राइम होता है। मैंने उन्हें देवास की एक घटना बताई जहां पे एक आदिवासी परिवार को जिंदा जला दिया गया था। देवास में जातिवाद को नकारने वाले लोग तुरंत मेरी कही बातों पे हां-हां करने लगे। उसमे से एक व्यक्ति जो कि खुद को राजपूत बता रहा था वो बोल रहा है, "हमलोग अपने गांव में उन्हें (दलित - आदिवासी) को घुसने भी नहीं देते हैं। वो हमारे खेतों पे काम करते हैं। लेकिन गांव के बाहर - बाहर ही रहते हैं। लेकिन यहां शहर में ऐसा कुछ नहीं है। ये दलित है, ये मुसलमान है, ये जनरल है और हम सब बैठकर हुक्का पी रहे हैं।" मैंने पूछा, "आप जो गांव में कर रहे है वो सही कर रहे हैं या गलत?" उसने बेहिचक जवाब दिया, "सही कर रहे हैं न भैया।" 

मध्य प्रदेश अब भी एक फ्यूडल स्टेट है। सबसे अधिक राजे - रजवाड़ों का राज्य। यहां न ही कोई सोशल मूवमेंट हुआ और न ही कोई कास्ट बेस्ड असेर्शन। एनसीआरबी का डेटा के अनुसार मध्य प्रदेश और राजस्थान देश के सबसे अधिक दलित - आदिवासियों के खिलाफ हिंसा करने वाले राज्य हैं। यदि जेएनयू में पीएचडी में दाखिला होता है तो मध्य प्रदेश का सीधी जिला मेरा फील्ड साइट होगा। न्यायपालिका कैसे जाति को समझती हैं उसे वहां के डिस्ट्रिक्ट स्पेशल एससी/एसटी कोर्ट में बैठकर समझा जाएगा। 

हमने देवास में गदैसिया पिपलिया गांव विजिट किया। ऑटो ड्राइवर मानते मानते २०० रुपए में गांव ले जाने को तैयार हो गया। रास्ते में फिर बातचीत तब शुरू हुई जब हमने अपने बगल से एक कार को गुजरते देखा जिसपे नेम प्लेट लगा था और बकायदा लाल लाल अक्षर में "करनी सेना" लिखा हुआ था। यह मेरे लिए कुछ भी अपवाद नहीं था। मध्य प्रदेश में ऐसा बहुत ही संभव है। ऑटो ड्राइवर ने कहा कि यहां करनी सेना, बजरंग दल का बहुत चलता है भैया। मैने पूछा कि आप भी वही हैं क्या? वो बोला कि मैं कैसे हो सकता हूं भैया, मैं तो मोहमद्देन हूं।

( गदैैैैसिया पिपलिया में ग्रामीणों से शड्यूल डिस्कशन करते हुए। )

गदैसिया पिपलिया दलित - मुसलमानो और ओबीसी का गांव था। गांव के सरपंच दलित थे। मध्य प्रदेश के गांवों में जाति का बंटवारा साफ दिख जाता है। जबलपुर के पटेल वाले गांव में जब गया था तो वो गांव काफी समृद्ध था। हमें ज्यादा समय नहीं मिल पाया कि जाति पर ज्यादा कंक्रीट कुछ कह पाऊं। 

कितना अजीब है ये दोनों शहर। उफ्फ!

हमने शाम की बस ले ली और छिंदवाड़ा की ओर निकल पड़े। मध्य प्रदेश की सड़कें बेहद अच्छी हैं। हमारी सीट चक्के के ऊपर थी लेकिन फिर भी जरा सा भी जर्क नहीं लगा। 


29/01/2023

छिंदवाड़ा

Comments

  1. Ye one of the best post lga
    Aapne jo gawn ka report diya

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