मंदसौर में अपना एक कमरा ले लिया हूं। यदि किसी शहर को घूमना है और उसे कम पैसे में घूमना है तो कोशिश करें कि अकोमोडेशन में कम खर्च करें। मैं अभिनव के साथ जहां ठहरा हूं वो कमरा केवल बेहद ही सस्ता है। कमरे की एक खिड़की सड़क के तरफ खुलती है लेकिन वो कोई काम का नहीं है। मध्य प्रदेश में यह मेरा तीसरा शहर है। मुझे लगता है कि किसी शहर को बहूत अच्छे से जानने के लिए उसे पैदल घूमना होता है। सीधी घूमते वक्त बिल्कुल भी ऐसा अनुभव नहीं हुआ कि मैं किसी पराए शहर में हूं। मुझे लगता था की मैं अपने फरबिसगंज के सड़कों पर टहल रहा हूं। दो से तीन दिनों में मुझे उसकी सड़कें याद हो गई। बेशक वहां दोस्त का साथ होने का फायदा रहा। हंसते खेलते सीधी का काम पूरा हो गया था।
अभी शाम के करीब 7:32 हुए हैं और मैं अभिनव के साथ अपने कमरे से बाहर निकल आया। पुरानी बस स्टैंड से होकर गांधी चौराहे से निकलते हुए मंदसौर की छोटी सी पार्क में झूले पर बैठा हूं। मैं झूला झूलने लगा। करीब अरसे बाद। कितना अच्छा लग रहा है। मैने किशोर दा का "जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम" बजने को लगा दिया है। अभिनव अकेले पार्क में ही कहीं दूर टहल रहा है। बाहर चाय वाले ने कहा कि नौ बजे तक इधर दुकानें बंद हो जाती हैं।
(चित्र: मंदसौर जनपद पंचायत)
मैंने लिखने का अपना एक नया तरीका खोज लिया है। पुरानी मोबाइल में टाइपिंग आसान थी मतलब हिंदी टाइपिंग आसान थी लेकिन नए वाले मोबाइल में हिंदी टाइपिंग करना थोड़ा मुश्किल हो गया। गूगल वाइस टाइपिंग को ऑन करके लिखने की नई प्रक्रिया अपना रहा हूं। मुझे पता है कि मुझे इसे बाद में एडिट करना होगा। जब मैं बोल रहा हूं तो मुझे थोड़ा रिलैक्स फील हो रहा है। अंदर की टीस बाहर आ रही ही। लिखना हमेशा मेरे लिए बिल्कुल वैसा ही रहा जैसा बुलोवोस्की कहा करते थे। हमें तब तक नहीं लिखना चाहिए जबतक हमें ऐसा न लगे कि हम बिना लिखे जिंदा न रह पाएंगे। आज पार्क में लिखते वक्त बिल्कुल वैसा हुआ। अपने आप हाथ ने पॉकेट से मोबाइल को खींच करके वाइस टाइपिंग शुरू कर दिया। कोई एफर्ट नहीं था।
जी कर रहा है कि एक वाइस रिकॉर्डर खरीद लूं जैसा फिल्मों में हुआ करता था। आवाज को रिकॉर्ड करना भी खूबसूरत हो सकता है।
(नोट: मुझे बेहद ज्यादा एडिटिंग करनी पड़ी । )
मंदसौर
23/01/2023
🌻🌻
ReplyDelete